21 अप्रैल, 2013

ब्याज सहित वापस की भूखण्ड की धनराशि वापस करने का आदेश

धन जमा होने के बावजूद मै. एम.टेक. डेवलपर्स को भूखण्ड न देना महँगा पड़ गया। जिला उपभोक्ता फोरम प्रथम ने कानपुर रोड लखनऊ निवासी शोभा गुप्ता की शिकायत पर आदेश दिया कि एम.टेक. डेवलपर्स शोभा गुप्ता द्वारा जमा किए गए 55 हजार रुपए मय सात फीसदी ब्याज वापस करे।
शोभा गुप्ता ने एम.टेक. सिटी लखनऊ में 200 वर्ग गज का एक प्लाट खरीदने के लिए मै. अशोका प्रापर्टिज के माध्यम से एक लाख पचपन हजार रुपए जमा किए थे। छह माह बीत जाने के बाद भी जब प्लाट नहीं दिया गया तो शोभा गुप्ता ने जमा किए गए धन को वापस करने की माँग की। दो साल बाद एम.टेक. डेवलपर्स ने शोभा गुप्ता को एक पत्र भेजा कि जुलाई, 2009 में बुकिंग वापस लेने के बाद ही रकम वापस की जाएगी। इस पर शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस भेजी जिसका कोई जवाब कम्पनी ने नहीं दिया। इसके बाद फोरम में शिकायत दर्ज की गई। फोरम में शिकायत दर्ज होने के बाद बिल्डर ने दो किस्तों में 50-50 हजार रुपए लौट दिए। शेष पचपन हजार रुपए न लौटाए जाने की शिकायत शोभा ने अपने वकील के माध्यम से फोरम से की। फोरम प्रथम के अध्यक्ष विजय वर्मा, न्यायिक सदस्य राजर्षि शुक्ल और वीना अरोरा ने विपक्षी को आदेश दिया कि एक माह के भीतर सात फीसदी ब्याज के साथ रुपया वापस करे साथ में 2000 हजार रुपए मानसिक क्षतिपूर्ति के व एक हजार रुपए वास व्यय के भी अदा करे।

(जिला उपभोक्ता फोरम प्रथम,  लखनऊ)

09 अप्रैल, 2013

ग़लत रिपोर्ट के लिए पैथोलाजी पर जुर्माना


पैथोलाजी रिपोर्ट जिस पर रोग की पहचान निर्भर करती है यदि ग़लत हो तो कल्पना कीजिए कि मरीज़ की क्या हालत होगी। ऐसे ही एक मामले में जिला उपभोक्ता फोरम द्वितीय लखनऊ ने महानगर सिथत सरकार डायगनासिटक्स को आदेश दिया कि वह इनिदरा नगर निवासी  लीलावती को अलग-अलग पैथालाजी में कराई गई जाँच में व्यय हुए 600/ रुपए अदा करे। फोरम ने इसके अलावा
 शिकायतकर्ता को हुए मानसिक क्षति के लिए 6000/ हजार और वाद व्यय के लिए 2 हजार रुपए अलग से देने के आदेश भी दिए।
लीलावती के पति एसएन कुशवाहा के पेट में तक़लीफ थी। डाक्टर ने हीमोग्लोबिन की जाँच कराने के लिए कहा। भुक्तभोगी ने सरकार डायग्नासिटकस से जाँच कराई, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार हीमोगलोबिन 5.6 मीग्रा था। इलाज़ कर रहे डाक्टर ने रिपोर्ट के आधार पर खून चढ़ाने की राय देते हुए किसी और पैथोलाजी से एक बार फिर से जाँच कराने को कहा। इसके दो अलग-अलग जाँच कराई गई, जिसमें हीमोग्लोबिन 12.4 व 12.2 मिग्रा पाया गया। फोरम दो के अध्यक्ष् आर.पी. पाण्डेय व सदस्य राजेन्द्र गुप्ता, सीमा भार्गव ने साक्ष्यों के आधार पर फैसला देते हुए आदेश दिया कि डायागनासिटक पैथोलाजी में हुए खर्च के 600/ रुपए व मानसिक कष्ट के लिए 6000/ तथा वाद व्यय के 2 हजार रुपए अलग से देने के आदेश दिया

( दिनांक- 02.04.2013, दैनिक जागरण, लखनऊ)

22 मार्च, 2013

त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत मानसिक क्षतिपूर्ति के साथ वापसी के आदेश


रायबरेली उत्तर प्रदेश निवासी अनुभव भार्गव की खरीदी गई नई बैटरी के वारंटी अवधि के दौरान खराब हो जाने के बाद भी न बदले जाने पर उपभोक्ता फोरम रायबरेली ने 7000/ रुपए मानसिक क्षतिपूर्ति के साथ त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत लौटाने का आदेश दिया।
मामले के अनुसार रायबरेली के अनुभव भार्गव ने राना नगर, रायबरेली सिथत पप्पू बैटरी से एक इन्वर्टर मय टयूबलर बैटरी दिनांक 03.07.2010 को रुपए 8000/ में खरीदी थी। जिस पर विक्रेता ने 24 माह की वारंटी दी थी। लेकिन शिकायत अनुभव ने विक्रेता से की। लेकिन विक्रेता द्वारा आश्वासन तो दिया गया पर बैटरी ठीक नहीं की गई और न ही बदली की गई। हैरान-परेशान होने के बाद अनुभव ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक लीगल नोटिस विक्रेता को भेजी। जिसका प्रत्युत्तर न मिलने पर इसकी शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 12 के तहत उपभोक्ता न्यायालय रायबरेली से की।
चूँकि विपक्षी पप्पू बैटरी की तरफ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हुआ और न ही अपना जवाबदावा दाखिल किया जिसपर कोर्ट ने एकपक्षीय कार्यवाही करते हुए परिवाद का निस्तारण शिकायतकर्ता के पक्ष में करते हुए कहा कि विपक्षी त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत रुपए 8000/ व मानसिक व शारीरिक क्षति के 7000/ रुपए तथा 1000/ रुपए परिवादी को निर्णय की तिथि से दो माह के अन्दर अदा करे, अन्यथा समस्त धनराशि पर परिवादी विपक्षी से निर्णय की तिथि से 8 फीसदी वार्षिक साधारण व्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

(वाद संख्या- 217/2011,  निर्णय दिनांक- 08.01.2013)

19 मार्च, 2013

खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर IRCTC पर जुर्माना


नयी दिल्ली निवासी जीएल अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ शताब्दी ट्रेन संख्या 2016 से यात्रा कर रहे थे। रजिस्टर्ड वेण्डर द्वारा परोसे गए खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर उन्होंने इसकी शिकायत कन्ज्यूमर फोरम(द्वितीय), नई दिल्ली से की जिस पर फोरम ने IRCTC पर रुपए 80000/  का जुर्माना लगा दिया।
मामले के संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता सप्तनी जयपुर से दिल्ली तक की यात्रा शताब्दी एक्सप्रेस से कर रहा था। जब उन्हें रात का खाना परोसा गया तो उन्होंने पाया की पनीर करी में काँच का टुकड़े हैं। जो कतई खाने लायक नहीं थी। उन्होंने तुरन्त अपनी शिकायत (संख्या- 161201) दर्ज कराई। घटिया क्वालिटी के खाने के कारण शिकायतकर्ता की तबियत खराब हो गई और उसे अपने को डाक्टर को दिखाना पड़ा। चार से पाँच दिन वो डाक्टर के निगरानी में रहे तकरीबन 5000 रुपए भी खर्च किए।
नार्दन रेलवे बड़ौदा हाउस, जो कि इस केस में प्रथम विपक्षी पार्टी थी, कोर्ट में कोई जवाबदावा दाखिल नहीं किया। विपक्षी संख्या-2 (IRCTC, NEW DELHI) ने लगाए गए आरोपों को खारिज़ कर दिया। लेकिन ये स्वीकार किया कि 3 जून, 2008 को ई मेल से उन्हें शिकायत प्राप्त हुर्इ थी। जिस पर कार्यवाही करते हुए उसने रजिस्टर्ड वेण्डर पर 5000 रुपए का जुर्माना कर दिया साथ ही चेतावनी भी दी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उल्लिखित 14(i)(d) में मुआवजे को सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण बनाम बलबीर सिंह (2004)7 CLD 861 (SC) के वाद में वृहद व्याख्या करते हुए कहा कि-

'शब्द मुआवजे का अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें वास्तविक हानि, संभावित हानि और इसका विस्तार शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक पीड़ा, अपमान, या चोट के नुकसान तक हो सकता है। कमीशन या फोरम न केवल सामान की कीमत बल्कि उपभोक्ता को हुए नुकसान की भरपाई मुआवजे के रूप में कर सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अघिनियम के विभिन्न खण्ड एक उपभोक्ता को उसके खिलाफ होने वाले अन्याय के लिए निवारण हेतु उसके दावे को और सशक्त बनाते हैं।'

उपरोक्त तथ्यों व बहस के आधार पर उपभोक्ता न्यायालय ने रुपए 80,000/ (रुपए अस्सी हजार मात्र) का बतौर मुआवजा शिकायतकर्ता को अदा किए जाने का आदेश दिया।


(वाद संख्या- 41/2008, निर्णय दिनांक- 19.04.2010

12 मार्च, 2013

छपे मूल्य से अधिक कीमत वसूलने पर IRCTC पर 5 लाख का जुर्माना


द्वारका, नई दिल्ली निवासी एचएम श्रान्या एवं महावीर विहार निवासी, सचिन धीमान की अलग-अलग शिकायत पर कन्ज्यूमर कोर्ट नई दिल्ली ने 'माजा' कोल्ड ड्रिंक पर छपी कीमत से अधिक कीमत वसूले जाने पर IRCTC पर पाँच-पाँच लाख का जुर्माना लगा दिया साथ ही मानसिक संत्रास के भी दस-दस हजार रुपए अलग से देने को कहा।
इस परिवाद में नई दिल्ली निवासी श्रान्या व महावीर विहार, नई दिल्ली निवासी सचिन धीमान ने IRCTC के रिटेल आउटलेट से माजा पेय पदार्थ 15 रुपए में ख़रीदा जबकि उस पर MRP 12 रुपए अंकित थी। श्रान्या व महावीर ने इसकी शिकायत अलग-अलग कन्ज्यूमर कोर्ट से की।
कन्ज्यूमर कोर्ट ने पाया कि इस तरह का व्यवसाय अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के अन्तर्गत आता है। सरकारी कम्पनी जो कि लाखों लोगों को फूड आर्टिकल्स सप्लाई करती है। इस तरह की आशा नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने विभिन्न पहलुओं पर विचारोपरान्त कहा कि IRCTC को 5 लाख रुपए का जुर्माना दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथारिटी, पटियाला हाउस को भरना होगा इसके अलावा 10-10 हजार रुपए को अन्य खर्चे, मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में शिकायतकर्ताओं को अदा करे। यह धनराशि इस आर्डर को प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर दे दी जानी चाहिए, अन्यथा कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट की धारा 25/27 के तहत कार्यवाही की जाएगी।

(वाद संख्या- CC/615/12 CC/621/12, निर्णय दिनांक- 11-03-2013 )

10 मार्च, 2013

डिफैक्ट युक्त प्रोडक्ट की पूरी कीमत वापस करने का आदेश


इंदौर निवासी विजय की शिकायत पर जिला उपभोक्ता न्यायालय इंदौर (म.प्र.) ने विपक्षी आशीर्वाद किचन गैलरी को डिफैक्ट युक्त विक्रीत प्रोडक्ट को वापस कर पूरी कीमत लौटाने का आदेश दिया साथ ही मानसिक संत्रास व परिवाद व्यय के भुगतान भी करने को आदेशित किया।
इस प्रकरण में शिकायतकर्ता विजय ने 5400/ रुपए में नकद भुगतान कर एक मैजिक स्पा (टब) विपक्षी आशीर्वाद किचन गैलरी से दिनांक 30.03.2009 को खरीदा। प्रोडक्ट खरीदते समय डीलर ने व निर्माता कम्पनी ने ये दावा किया था कि मैजिक स्पा (टब) में पाँव रखते ही शरीर की बुराइयाँ पानी में खींच लेता है एवं पानी का कलर धीरे-धीरे बदल जाता है। जब परिवादी ने उसे उपयोग किया तो पाया कि प्रोडक्ट में आर.ओ. टेस्ट करने का सिस्टम जो पानी में घुले हुए मिनरल्स को हिसाब से कलर चेंज करता है। पानी में पाँव रखे बगैर भी पानी का कलर चेंज हो जाता है। जब इस बात की शिकायत परिवादी ने डीलर से की तो उसने प्रोडक्ट लेने से इन्कार कर दिया। परेशान होने के बाद विजय ने इस बावत अपनी शिकायत उपभाक्ता न्यायालय के समक्ष दर्ज कराई।
इस संदर्भ में विपक्षी का कथन था कि हमने प्रोडक्ट बेचते समय की खरीदार को बता दिया था कि इसकी कोई गारंटी या वारंटी नहीं है व बेचा हुआ माल वापस नहीं होगा। उन्हें केवल कमीशन ही मिलता है। उसका ये भी कहना था कि परिवादी ने उक्त प्रोडक्ट का आर्डर दिया था कम्पनी ने क्या विशेषताएँ बताई ये निर्माता कम्पनी व परिवादी के बीच का मामला है। 
परिवादी का कथन था कि उसने प्रोडक्ट आर्डर देकर नहीं बल्कि रेडी स्टाक में डिलवरी ली थी। चूँकि बीजक में या प्रोडक्ट में भी निर्माता का नाम-पता नहीं लिखा था इसलिए विपक्षी ही इसका दोषी है।
न्यायालय ने उभय पक्षों के तर्कों व प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद ये माना कि विपक्षी ने डिफैक्ट युक्त प्रोडक्ट मैजिक स्पा विक्रय कर सेवा में त्रुटि की है। जिसके लिए उसे परिवादी से प्रोडक्ट वापस लेकर पूरी कीमत 5400/ रुपए व 1000-1000 रुपए मानसिक संत्रास तथा परिवाद व्यय के भी परिवादी को अदा करे।

(वाद संख्या- 172/209, निर्णय दिनांक- 28.01.2013)


07 मार्च, 2013

गलत सामान देने पर 'रिलायंस फ्रेश' पर हुआ जुर्माना


रिलायंस फ्रेश द्वारा किंग्स रोड, जयपुर निवासी बालकृष्ण को खरीदे गए प्रोडक्ट के स्थान पर दूसरा प्रोडक्ट देना खासा महँगा पड़ गया, जिला उपभोक्ता संरक्षण द्वितीय, जयपुर ने उपभोक्ता की शिकायत पर न केवल मय ब्याज प्रोडक्ट की पूरी कीमत वापसी का आदेश दिया बल्कि मानसिक संताप और परिवाद व्यय की क्षतिपूर्ति भी दिलाई।
उपभोक्ता बालकृष्ण ने रिलायंस फ्रेश से दिनांक 09.05.2009 को Dove Conditioner Daily Therapy के स्थान पर Dove Conditioner dry Therapy नामक प्रोडक्ट दे दिया और इनवायस में 115/ रुपए जोड़ लिए। जब शिकायतकर्ता इस प्रोडक्ट को बदलने गया तो विपक्षी ने मना कर दिया और उसके साथ बदसलूकी की।
न्यायालय में सुनवाई के दौरान विपक्षी की तरफ से कोई हाजिर नहीं हुआ। जो बिल परिवादी को दिया गया था वो अपठनीय था। न्यायालय ने माना की विपक्षी का व्यवहार 'अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस' को छिपाने का था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा की आदेश की तारीख से दो माह में परिवादी को 115/ रुपए वसूली दिनांक से अदाएगी तक 9 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित अदा करे व मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति स्वरूप 10,000/ रुपए व परिवाद व्यय के 2000/ रुपए भी दें।
उपभोक्ता फोरम के इस आदेश को रिलायंस फ्रेश ने राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (बैंच नम्बर-1) अपील संख्या- 72/2011 के अन्तर्गत अपील की। किन्तु राज्य उपभोक्ता आयोग ने दिनांक 29.01.2013 को सुनाए गए फैसले में जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को बिना किसी रददोबदल के बरकरार रखा।

(वाद संख्या- 599/2009, अपील संख्या- 72/2011निर्णय दिनांक- 05.10.2010 )

04 मार्च, 2013

खराब कूलर वापस करने या पूरी रकम मय ब्याज लौटाने का आदेश



श्री गंगानगर (राजस्थान) की जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच ने सतीश गोयल के परिवाद पर सिम्फनी के खराब कूलर को वापस करने या फिर खरीद की पूरी रकम मय 9 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया।

इस मामल में परिवादकर्ता सतीश गोयल ने सिम्फनी कम्पनी का एक कूलर दिनांक 22.11.2006 को 7000/ रुपए नक़द भुगतान देकर खरीदा था जिस पर दो साल की वारंटी व गारंटी थी। परिवादी तहसील घुड़साना का निवासी था अत: विपक्षी ने उक्त कूलर एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी के माध्यम से भेजा था जो उसे 24.11.2006 को प्राप्त हुआ था। कूलर अन्दर से मटमैला और काला हो गया था, उसकी बाडी भी 2 इंच टूटी हुई थी और सबसे बड़ी बात की जो कूलर परिवादी ने पसन्द किया था वो उसे नहीं भेजकर दूसरा माडल भेजा था। परिवादी ने इस बात की शिकायत तत्काल विपक्षी को की लेकिन विपक्षी ने कोई संज्ञान नहीं लिया। जब परिवादी ने लोकल मिस्त्री को दिखाया तो उसने बताया कि कूलर में जो पंखे लगे हैं वो उलट लगे हैं। त्रस्त परिवादी ने उसे सही कराया लेकिन 7-8 दिन चलने के बाद वे फिर जाम हो गया। विपक्षी ने 14.07.2007 को अपना मिस्त्री भेजा जिसने बताया कि कूलर में निर्माण संबंधी दोष है।


न्यायालय में विपक्षी ने अपने जवाबदावे में कहा कि परिवादी ने तथ्यों को छिपाया है वास्तव में परिवादी दिनांक 22.11.2006 को कूलर खरीद कर ले गया था जो बिल्कुल सही काम कर रहा था। कूलर किस माध्यम से ले जाया गया इस बात का इल्म विपक्षी को नहीं।

परिवादी के अधिवक्ता ने न्याय दृष्टांत 1(1991) सीपीजे 434, 1(1991) सीपीजे 104 तथा 1(1991) सीपीजे 110 प्रस्तुत किए। दिनांक 22.11.2006 को को कूलर की बिल्टी से ये तथ्य प्रमाणित था कि कूलर परिवादी को विपक्षी ने ट्रांसपोर्ट के जरिए भेजा था।
न्यायालय ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देश दिया कि वह परिवादी को विक्रय किए गए सिम्फनी एयर कूलर के बदले नया दोष रहित कूलर उपलब्ध कराए या खरीद राशि 7000/ रुपए 22.11.2006 दिनांक से वास्तविक अदाएगी तक 9 फीसदी वार्षिक ब्याज सहित लौटाएगा व विपक्षी परिवादी को वाद व्यय स्वरूप 1100/ रुपए तथा क्षतिपूर्ति स्वरूप 1100/ रुपए भी अदा करे। 

(वाद संख्या- 137/2008, निर्णय दिनांक- 05.10.2010)

01 मार्च, 2013

राज्य उपभोक्ता आयोग ने पंजाब नेशनल बैंक की अपील खारिज़ की


राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग ने पंजाब नेशनल बैंक की बच्चू सिंह व अन्य के खिलाफ दाखिल अपील खारिज़ करते हुए जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जारी 07.01.2011 दिनांकित आदेश को आंशिक संशोधन के साथ बरकरार रखा है, जिसमें अपीलार्थी बैंक को 200000/  रुपए मय 9 फीसदी ब्याज के साथ व परिवाद व्यय तथा मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति स्वरूप 25000/ रुपए का भुगतान करने को कहा गया है।
मामले के अनुसार परिवादी ने विपक्षी यानि अपीलार्थी बैंक से दो लाख रुपए की सीसी लिमिट ले रखी है जिस पर बैंक द्वारा स्टाक का बीमा कराया जाता है। दुर्भाग्यवश 10.05.002 को सुबह 9.30 बजे परिवादी की फर्म में आग लग गई और तकरीबन छह लाख रुपए का नुकसान हो गया। अपीलार्थी का कथन था कि आग दुकान पर नहीं लगी बल्कि गोदाम में लगी थी जिसके लिए वह दोषी नहीं है। अत: जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को अपास्त किया जाए।
जबकि प्रत्यर्थी परिवादी का कहना था कि उसने दो लाख रुपए की सीसी लिमिट बैंक से ली थी जिस पर नियमानुसार अपीलार्थी को 300000/  रुपए का बीमा कराना चाहिए था जो बैंक ने नहीं किया अत: परिवादी को हुई क्षति की भरपाई का दायित्व बैंक का है।
न्यायालय ने उपरोक्त दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद निष्कर्ष निकाला कि दिनांक 10.05.2002 को दुर्घटना कारित होने के बाद बैंक ने सेवा में कमी करते हुए दिनांक 13.05.2002 को बीमा करवाया और कवर नोट दिया है। यदि अनुबंध में बीमा करवाने का दायित्व ऋणी पर रखा हो और बैंक बीमा नहीं करवाता है तो बीमा करवाने के संबंध में बैंक की सेवा में कमी नहीं मानी जाएगी किंतु बैंक प्रैकिटस के अनुसार यदि किसी मामले में बैंक से ऋणी के खाते में प्रीमियम की कटौती कर बीमा करा दिया तो फिर बीमा कराने का दायित्व बैंक का होगा। इस मामले में बैंक ने दो बार प्रीमियम कटौती कर बीमा करा दिया तो फिर बीमा का दायित्व बैंक का होगा। न्यायालय ने माना कि बैंक द्वारा बीमा समय पर नहीं करवाने के कारण परिवादी को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति का दायित्व भी बैंक का है।
राज्य आयोग ने तथ्यों व तर्कों के आधार पर अपीलार्थी पंजाब नेशनल बैंक की अपील खारिज कर दी व जिला उपभोक्ता फोरम के 07.01.2011 के आदेश को बरकरार रखते हुए आंशिक रूप से संशोधित करते हुए कहा कि दिनांक 10.05.2002 से अदायगी तक 9 फीसदी वार्षिक दर से 200000/ रुपए ब्याज सहित अदा करेगा, साथ ही परिवाद व्यय व मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति स्वरूप 25000/ रुपए का भुगतान भी परिवादी को करेगा।

(अपील संख्या- 264/2011, निर्णय दिनांक- 01.01.2013)

28 फ़रवरी, 2013

सैमसंग कम्पनी को लौटाना पड़ा मोबाइल हैंडसैट का पूरा पैसा


जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच जोधपुर (प्रथम) ने वसीम रज्जा की शिकायत पर सैमसंग इण्डिया इलैक्ट्रानिक्स प्राइवेट लिमिटेड को सेवा में त्रुटि के लिए दण्डित करते हुए खरीदे गए मोबाइल हैण्डसैट का पूरा पैसा लौटाने का आदेश दिया, साथ ही आर्थिक व मानसिक क्षति के 2000/ रुपए व परिवाद के रूप में 1500/ रुपए भी दिलाए।
मामले के अनुसार उपभोक्ता वसीम रज्जा ने दिनांक 18.06.2009 को सैमसंग का सुपर हीरो माडल का फोन खरीदा लेकिन कुछ समय बाद ही फोन ने काम करना बंद कर दिया। जिसे वादी ने सैमसंग सर्विस सेन्टर पर जमा कर दिया। सर्विस सेंटर में 22-23 दिन तक चक्कर लगाने के बाद भी फोन नहीं बना और न ही उसका पैसा वापस मिला। परिवादी एक इंश्योरैंस एजेंट था जिसे फोन की बेहद जरूरत थी। जब सर्विस सेंटर से बात नहीं बनी ता उसने सैमसंग के जयपुर ब्रांच में भी फोन करके शिकायत दर्ज कराई। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। अन्तत: वसीम ने उपभोक्ता न्यायालय की  शरण ली।
विपक्षी ने न्यायालय में अपना जवाब दावा पेश नहीं किया। दिनांक 21.11.2011 को प्रार्थना-पत्र के साथ जवाब प्रस्तुत करने पर 300/ रुपए कास्ट अदा करने पर जवाब रिकार्ड पर लेने के आदेश दिए गए। लेकिन कास्ट नहंी जमा करने पर विपक्षी सैमसंग इणिडया इलैक्ट्रानिक्स का जवाब रिकार्ड पर नहीं लिया जा सका।
न्यायालय ने विचारण में शिकायतकर्ता की शिकायत को सही पाया और विपक्षी पर स्पष्ट रूप से सेवा में त्रुटि के लिए दोषी पाया। न्यायालय ने विपक्षी को मोबाइल हैण्डसैट की पूरी कीमत 1699/ रुपए व परिवाद पेश करने की दिनांक 08.02.2010 से ताववसूली तक 9 फीसदी वार्षिक दर से ब्याज अदा करने के साथ ही आर्थिक व मानसिक क्षति के 2000/ रुपए व परिवाद व्यय के 1500/ रुपए दिए जाने का आदेश भी दिया।

(वाद संख्या- 228/2010, निर्णय दिनांक- 17.0.2013)


26 फ़रवरी, 2013

अधिक कीमत वसूलने पर रिलायंस फ्रेश पर हुआ जुर्माना


रिलायंस फ्रेश द्वारा शिकायतकर्ता प्रमोद कुमार दाणी से साबुन पर अंकित मूल्य से अधिक लिए जाने पर जिला उपभोक्ता फोरम, उदयपुर ने मानसिक संताप व अनुचित व्यापार व्यावहार विधि होने पर 2000/ रुपए का जुर्माना लगाते हुए परिवाद व्यय के 100/0 रुपए तथा अधिक लिए गए 6/ रुपए भी लौटाने के आदेश दिए।
इस प्रकरण में शिकायतकर्ता प्रमोद कुमार दाणी ने दिनांक 24.03.2012 को विपक्षी रिलायंस फ्रेश लि. से कपड़े धोने के दो साबुन जिसकी एम.आर.पी. 24 रुपए प्रति नग थी, उससे इनवायस में 27/ रुपए वसूले गए अर्थात प्रति नग 3/ रुपए अधिक लिए गए।
न्यायालय में विपक्षी की तरफ से इसका खण्डन नहीं किया गया जिस पर न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि परिवादी से अधिक वसूले गए 6/ रुपए, मानसिक संताप, पीड़ा तथा अनुचित व्यापार-व्यवहार होने के निमित्त 2000/ रुपए एवं परिवाद व्यय के निमित्त 1000/ रुपए कुल 3006/ रुपए नोटिस प्राप्त होने के एक माह के अन्दर परिवादी को अदा करे।

(वाद संख्या- 134/2012, निर्णय दिनांक- 21.01.2013)

25 फ़रवरी, 2013

स्टेट बैंक आफ इन्दौर को चैक डिसआनर करना महँगा पड़ा



स्टेट बैंक आफ इन्दौर की मुम्बई-आगरा रोड, इन्दौर की शाखा को नरेन्द्र कुमार के बचत खाता में पैसा होने के बावजूद चैक डिसआनर करना महँगा पड़ गया उसे 10000/ रुपए के मानसिक संत्रास के साथ ही शिकायतकर्ता को 1000/ रुपए परिवाद खर्च भी अदा करना पड़ा।
            शिकायतकर्ता के मुताबिक उसने दिनांक- 23.11.2009 को पालिसी के नवीनीकरण हेतु 2233/ रुपए प्रीमियम का भुगतान चैक से किया था जो 19.11.2009 दिनांकित था। विपक्षी के द्वारा 22.11.2009 को "टू डेज़ ओपनिंग बैलेंस इनसफीसिएन्ट" के टिप्पणी के साथ चैक अनादृत कर दिया। जबकि उस दिनांक तक परिवादी के बचत खाते में 8209.85 रुपए की राशि थी। शिकायतकर्ता का कथन था कि बैंक की इस लापरवाही की वजह से उसकी मेडीक्लेम पालिसी की निरन्तरता भंग हो गई पालिसी निरस्त कर दी गई परिवादी का बोनस व मेडीक्लेम का अधिकार समाप्त हो गया। 
            विपक्षी बैंक की ओर से 2004 एम.पी.डब्ल्यू.एम. वाल्यूम शार्ट नोट 1999/ की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया गया कि जिस पक्षकार के पास सर्वोत्तम साक्ष्य उपलब्ध हो, भले ही उस पर सबूत का भार न हो तो भी सर्वोत्तम साक्ष्य पेश नहीं की हो तो 'एडवर्स इन्फ्रेंस" निकाला जाना चाहिए। 

            परिवादी की ओर से 2010(4) एम.पी.एल.जे. पेज 9 की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया कि जब विपक्षी की लापरवाही स्पष्ट रूप से प्रतीत हो तो 'रेस्इस्पा लाक्यूटर" का सिद्धांत लागू होगा। परिवादी को कुछ भी साबित नहीं करना होता है, क्योंकि बातें स्वयं सिद्ध हो जाती हैं।
            न्यायालय ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों का अवलोकन करने पर पाया कि परिवादी के खाते में उस दिनांक तक पर्याप्त रक़म थी जिस दिनांक को बैंक ने चैक डिसआनर किया। इस तरह चैक का डिसआनर करना सेवा में त्रुटि है।
            न्यायालय ने विपक्षी स्टेट बैंक आफ इन्डिया को मानसिक संत्रास के 10,000/ रुपए व परिवाद व्यय के 1000/ रुपए परिवादी को दिए जाने का आदेश दिया।

(वाद संख्या- 541/09, दिनांक- 08.01.2013)


21 फ़रवरी, 2013

कोरियर डिलवरी के लेट-लतीफी पर भरना पड़ा जुर्माना



इन्दौर (मध्य प्रदेश) की जिला उपभोक्ता फोरम ने कोरियर डिलवरी में लेट-लतीफी करने पर कोरियर कम्पनी के विरुद्ध 3000/ रुपए मानसिक संत्रास के साथ-साथ 1000/ रुपए परिवाद व्यय भी अदा करने का आदेश विपक्षी को दिया।
            पाटीदार इण्टरप्राइजेज के अरुण कुमार आर्य ने तुकोगंज, इन्दौर स्थित रिलायंस कोरियर पर डिलवरी न करने का आरोप लगाते हुए उसके विरुद्ध एक केस इन्दौर उपभोक्ता फोरम में दायर कर दिया। परिवादी का कथन था कि उसके द्वारा 19.02.2010 को एक लिफाफा रिलायंस कोरियर के माध्यम से हिन्दुस्तान मेटल इण्डस्ट्रीज़, लुधियाना भेजा गया था। जिसमें टैक्स संबंधी फार्म सी थे। जबकि विपक्षी रिलायंस कोरियर ने अदालत में कहा कि परिवादी ने पता सही नहीं लिखा था और मोबाइल नम्बर भी नहीं लिखा था, सही पता मालुम चलने पर 23.03.2010 को उक्त कोरियर की डिलवरी कर दी गई।
            न्यायालय ने पाया कि विपक्षी ने ये नहीं बताया कि पत्र की डिलवरी किस माध्यम से की गई और न ही इस बावत कोई रसीद प्रस्तुत की गई। न्यायालय ने कहा कि परिवादी ने 2000/ रुपए टैक्स के व 5000/ रुपए इण्डैमिनीटी बाण्ड पर खर्च होने नुकसान बताया लेकिन इस संबंध में कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया।
            न्यायालय ने विपक्षी को आदेशित किया कि परिवादी को 3000/ रुपए मानसिक संत्रास के व 1000/ रुपए परिवाद व्यय के अदा करे।

(वाद संख्या- 868/2010, निर्णय दिनांक- 18.01.2013

20 फ़रवरी, 2013

सूचना न देने पर 500 रुपए क्षतिपूर्ति अदा करने के आदेश


जिला मंच उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर ने अपने एक आदेश में परिवादी को वांक्षित सूचना न प्रदान किए जाने पर सामान्य क्षतिपूर्ति 500/  रुपए देने को कहा।
मामले के अनुसार भगवान गंज, अजमेर निवासी नाथू सिंह ने जनसूचना अधिकार, 2005 की धारा 6(1) के तहत प्रतिवादी लोक सूचना अधिकारी एवं सचिव, नगर सुधार न्यास, अजमेर से एक सूचना माँगी थी। इस हेतु नाथू सिंह ने नियमानुसार 10 रुपए का भारतीय पोस्टल आर्डर भी फीस के रूप लगाया था। किन्तु प्रार्थी के प्रार्थना पत्र का को जवाब उक्त अधिकारी द्वारा नहीं दिया गया। प्रतिवादी के व्यवहार से निराश होकर परिवादी ने जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण में अपनी शिकायत दर्ज करा दी।

 विपक्षी ने परिवाद के संदर्भ में न्यायालय के समक्ष कहा कि परिवादी का आवेदन हमें मिला है किंतु प्रश्नात्मक चाही गई सूचना नहीं दी जा सकती क्योंकि उत्तरदाता 'EXEMPTED' है। विपक्षी ने न्यायालय से वाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की।

 न्यायालय ने पाया की विपक्षी ने न तो वादी को सूचना दी और न ही सूचना न दिए जाने का कोई कारण बताया। जो सेवा में एक बड़ी कमी है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी सूचनाएँ या वादी के आदेश का निस्तारण निर्धारित समयावधि में न किया जाना माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा रिवीज़न पीटिशन संख्या 244/04, निर्णय दिनांक- 28.05.2009 में डा एस.पी. थिरुमाला राव बनाम म्यूनिसपल मैसूर के अनुसार सेवा दोष है।
 न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विपक्षी सामान्य क्षतिपूर्ति के 500 रुपए इस आदेश के दो माह के अन्दर परिवादी को अदा करे, अथवा उक्त समस्त आदेशित राशि डिमाण्ड ड्राफ़ट के माध्यम से परिवादी के पते पर रजिस्टर्ड पोस्ट भेज दे।


(वाद संख्या- 299/2012, निर्णय दिनांक- 15.01.2013)


18 फ़रवरी, 2013

टेलीफोन उपभोक्ता को मिली राहत



हनुमानगढ़ (रजस्थान) के जिला उपभोक्ता न्यायालय ने BSNL द्वारा अधिक वसूले गए रुपए न केवल वापस करने का आदेश दिया बलिक उचित हर्जा-खर्चा भी दिलाया।
मामले के अनुसार परिवादी मदन लाल ने एक लैण्डलाइन ब्राडबैण्ड कनेक्शन विपक्षी BSNL से लिया था। विपक्षी द्वारा 01.06.2011 से 30.06.2011 तक का बिल 388/ रुपए भेजा गया था जिसे परिवादी ने जमा कर दिया लेकिन जब अगले माह पुन: बिल आया तो पुराना बिल भी उसमें जुड़ा हुआ था जो परिवादी द्वारा पहले ही जमा कर दिया गया था। इसी तरह BSNL ने कुछ और भी आगे के बिल भेजे जबकि सभी बिलों का भुगतान किया जा चुका था बावजूद इसके परिवादी का टेलीफोन विच्छेद कर दिया गया। हैरान-परेशान होने के बाद परिवादी मदन लाल ने उपभोक्ता न्यायालय में वाद दायर कर दिया।

न्यायालय में विपक्षी ने कहा कि उपभोक्ता ने अपना पहला बिल डबली राठान दूरभाष केन्द्र पर जमा किया था। नई बिलिंग चण्डीगढ़ से होने के कारण पिछला बकाया जुड़कर आ गया। फोन बन्द होने का कारण तकनीकी फाल्ट बताया और कहा कि चूँकि मौजूदा मामले में विवाद बिलों की बावत है इसलिए इसकी सुनवाई इस न्यायालय में नहीं होनी चाहिए। 
न्यायालय विपक्षी द्वारा पेश की गई रूलिंग 2009 डीएनजे सुप्रीम कोर्ट पेज नम्बर 1067 का अध्ययन करने के बाद इस वाद को स्वीकार किया और विपक्षी बीएसएनएल को आदेशित किया कि परिवादी से अधिक वसूले गए 53 रुपए लौटाए साथ ही 43 दिनों तक बन्द रहे टेलीफोन की अवधि के किराए में छूट की गणना कर उसे आगामी बिल में समायोजित करें व मानसिक परेशानी के 2100/ रुपए व परिवाद व्यय के 2100/ रुपए का भुगतान भी परिवादी को एक माह के अन्दर करें।

(वाद संख्या- 87/2012, निर्णय दिनांक- 17.01.2013)

16 फ़रवरी, 2013

सूरजमुखी के खराब बीजों के मूल्य वापसी का आदेश


कानपुर नगर के जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम ने वेद प्रकाश की शिकायत पर प्रतिवादी को सूरजमुखी के खराब बीजों के मूल्य को वापस करने का आदेश जारी किया। 
प्रकरण के अनुसार शिकायतकर्ता वेद प्रकाश ने श्री बालाजी बीज भण्डार कानपुर से रुपए 11250 में 45 किलोग्राम सूरजमुखी का बीज 26.02.2008 को खरीदा था। बीज का सम्पूर्ण तैयारी के साथ बोया था जिसमें 66700 रुपए खर्च किए, बावजूद इसके बीज 12-13 दिनों तक नहीं उगे। वेद प्रकाश ने इसकी शिकायत श्री बालाजी बीज भण्डार से की लेकिन श्री बालाजी बीज भण्डार का कहना था कि वह इन बीजों मे. कटियार फर्टिलाइजर शिवली रोड, कानपुर से कमीशन के आधार पर प्राप्त करता है, वह बीज स्वयं तैयार नहीं करता वास्तव में बीज एडवान्श इणिडया लिमिटेड  केयर आफ यूनिकार्न सी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा तैयार किए जाते हैं।
न्यायालय में मे. बीज एडवान्श इणिडया लि. ने परिवादी की शिकायत को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि बीज खराब होने के लिए विपक्षी संख्या-1 श्री बालाजी बीज भण्डार जिम्मेदार है।
न्यायालय ने यह माना कि यदि बोए गए बीज अपनी गुणवत्ता पर नहीं पाए जाते हैं तभी कोई किसान शिकायत के लिए तैयार होता है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विपक्षी बीज एडवान्श इणिडया लिमिटेड केयर आफ यूनिकार्न सीडस प्रा. लि. वादी को 30 दिनों के अन्दर 11250 रुपए अदा करे जहाँ तक खेतों को तैयार करने के संबंध में खादों के प्रयोग का कोई विवरण परिवादी ने प्रस्तुत नहीं किया इस कारण मात्र बीज का मूल्य ही परिवादी पाने का अधिकारी है।

(वाद संख्या-716/2009, निर्णय दिनांक- 14.01.2013)

15 फ़रवरी, 2013

आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी के विरुद्ध दायर वाद खारिज


परिवादिनी श्रीमती कनक मिश्रा ने अपने पति यू.के. मिश्रा व पुत्र विकास मिश्रा द्वारा विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी से लिए गए होम लोन के संदभ में एक वाद जिला उपभोक्ता फोरम बरेली में दाखिल किया गया था जिसे फोरम ने खारिज कर दिया।
      मामले के अनुसार याची के पति यू.के. मिश्रा व पुत्र विकास मिश्रा ने 700000/ रुपए का होम लोन विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी से लिया था। दुर्भाग्यवश यू.के. मिश्रा के मृत्युपरांत पुत्र विकास मिश्रा ने पोस्ट डेटेड चेक के माध्यम से लगातार राशि का भुगतान किया। शिकायतकर्ता के अनुसार पुत्र की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गर्इ। किन्तु विपक्षी को कई बार लिखने के बावजूद होम लोन के साथ मिलने वाला मुत दुर्घटना बीमा क्लेम नहीं दिया और बकायी धनराशि के लिए नोटिस भेज दिया।

      न्यायालय ने दस्तावेजों के अवलोकन करने पर पाया कि होम लोन के साथ जो मृत्यु दुर्घटना बीमा की सुविधा दी गई थी वो केवल प्रथम लोन आवेदक को ही प्रदान की गई थी।
      शर्त के अनुसार-
"Further, we are pleased to inform that with the final disbursement o this loan, a Free Personal Accident Insurance cover to the first applicant o this loan, to the extent o principal amount, is extended as per as the applicable conditions."

      न्यायालय ने यही भी पाया कि प्रथम आवेदक यू.के. मिश्रा का देहान्त दुर्घटना में नहीं बल्कि स्वाभाविक हुआ था। न्यायालय ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर परिवादिनी श्रीमती कनक मिश्रा का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध खारिज कर दिया, चूँकि परिवादिनी प्रश्नगत बीमा पालिसी की लाभार्थी नहीं थी इसलिए न्यायालय द्वारा उन्हें कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारिणी नहीं पाया गया।

(वाद संख्या- 108/2011, निर्णय दिनांक- 10.01.2013)

14 फ़रवरी, 2013

“माइक्रोमैक्स” के खराब मोबाइल को क्षतिपूर्ति के साथ बदलने का आदेश


मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफैक्ट के चलते परिवादी की शिकायत पर माइक्रोमैक्स कम्पनी के मोबाइल को बदलकर नया मोबाइल देने और साथ में मानसिक संताप व वाद खर्च की क्षतिपूर्ति अदा करने का विपक्षी को आदेश बरेली उपभोक्ता न्यायालय ने दिया है।
            परिवादी के मुताबिक उसने एक सीडीएमए हैंडसेट जो माइक्रोमैक्स कम्पनी का था, शालू मोबाइल सेन्टर, मीरगंज, बरेली से 2200/ रुपए नकद देकर खरीदा था। मोबाइल कुछ दिनों तक तो ठीक चला लेकिन उसके बाद उसने काम करना बन्द कर दिया। माइक्रोमैक्स मोबाइल केयर सेन्टर पर जब परिवादी ने अपना मोबाइल दिखाया तो उसे बताया गया कि मैन्यूफ़ैक्चरिंग फाल्ट के कारण मोबाइल रिपेयर नहीं हो सकता है। कस्टमर केयर यानि कम्पनी के अथराज्ड सर्विस सेन्टर ने इस बावत एक पेपर परिवादी को दिया और कहा कि आपने जिस डीलर से मोबाइल खरीदा था इस पेपर को देकर और अपना खराब मोबाइल जमा कर नया मोबाइल ले लें। परिवादी ने यही किया लेकिन पहले तो दुकानदार कहता रहा कि नया मोबाइल आपको मिल जाएगा लेकिन बाद में उसने मोबाइल सेट नया देने से इन्कार कर दिया। जिस पर परिवादी ने उपभोक्ता न्यायालय में अपना वाद दाखिल कर दिया।
            न्यायालय ने परिवादी द्वारा दाखिल अभिलेखीय साक्ष्यों को देखने पर पाया कि वास्तव में मोबाइल सेट में निर्माण संबंधी त्रुटि थी। जिसे न बदलकर विपक्षीगण द्वारा शिकायतकर्ता के साथ अनुचित व्यापार प्रथा अपना है, जिसे सेवा में त्रुटि माना गया।
            न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि परिवादी को उसी मेक/माडल का दूसरा मोबाइल अथवा उस मोबाइल की कीमत 2200/ रुपए विपक्षीगण को वापस करें, साथ ही ये भी आदेशित किया कि आर्थिक क्षति के 5000/ रुपए तथा वाद व्यय के रूप में 2000/ रुपए अतिरिक्त अदा करें। यदि एक माह के अन्दर ऐसा नहीं किया जाता तो निर्णय की तिथि से भुगतान की तारीख तक 9 फीसदी साधारण वार्षिक ब्याज भी अदा किया जाए।


(वाद संख्या- 38/2010, निर्णय दिनांक- 03.01.2013)  

13 फ़रवरी, 2013

बरेली विकास प्राधिकरण द्वारा गलत रूप से काटी गई राशि लौटाने का आदेश


बरेली के उपभोक्ता न्यायालय ने परिवादी के गलत रूप से काटे गए 39700/ रुपए हर्जे-खर्चे और मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति समेत बरेली विकास प्राधिकरण को लौटाने के निर्देश दिए हैं।
       प्रकरण के अनुसार बरेली निवासी दीपक भसीन ने समाचार-पत्र में छपे विज्ञापन के आधार पर एक भूखण्ड प्राप्ति हेतु बरेली विकास प्राधिकरण को नियमानुसार मय पंजीकरण धनराशि 1,58,800/ रुपए जो कि बैंक ड्राफ्ट के रूप में थी, आवेदन किया।
       बरेली विकास प्राधिकरण की पंजीकरण पुस्तिका की शर्त नम्बर 9.1 में लिखा था-
यदि कोई पंजीकृत व्यक्ति पंजीकरण धनराशि लाटरी पड़ने से पूर्व वापस लेना चाहता है, तो उसको पंजीकरण धनराशि बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
       उपरोक्त शर्त का आधार लेते हुए वादी ने दिनांक 09-11-2010 को अपनी जमा धनराशि प्राप्ति का अनुरोध प्राधिकरण से किया। परिवादी के अनुरोध के आधार पर प्राधिकरण ने अपने नियम 9.2 जिसके अनुसार-
यदि कोई आवेदक लाटरी में आबंटन हो जाने के पश्चात अपने भूखण्ड को निरस्त कराकर धनराशि वापस लेना चाहता है, तो पंजीकरण धनराशि का 25 प्रतिशत काटकर शेष धनराशि उसे बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
       प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त नियम 9.2 के आधार वादी को उसकी कुल जमा धनराशि का 25 प्रतिशत यानि 39700/ काटकर शेष धनराशि प्रदान कर दी गई।
       प्राधिकरण के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर काटी गई धनराशि मय क्षतिपूर्ति और वाद खर्च के साथ लौटाने के लिए उपभोक्ता न्यायालय में वाद दाखिल कर दिया।
       न्यायालय ने समस्त दस्तावेजों के अवलोकन के बाद पाया कि प्रतिवादी द्वारा जो आबंटन/चयन पत्र दिनांक 16-09-2010 को भेजा गया था उसमें न तो भूखण्ड संख्या का उल्लेख था और न ही लाटरी ड्रा के माध्यम चयन का जिक्र! वास्तव में अभी लाटरी ड्रा होना शेष है। न्यायालय ने ये निष्कर्ष भी निकाला कि वादी द्वारा दिए गए निरस्ती प्रार्थना-पत्र के दिनांक 09-11-2010 तक प्राधिकरण में भूखण्ड की लाटरी ड्रा नहीं आयोजित किया गया था।
       अतः न्यायालय ने प्राधिकरण के नियम 9 प्रतिशत का समर्थन वादी के पक्ष में मानते हुए प्रधिकरण को 39700/  रुपए मय मानसिक संताप 5000/ रुपए व वाद खर्च के रूप में 2000/ भी अदा करने का निर्देश दिया। अदा की जाने वाली कुल धनराशि पर वाद दायर करने के दिनांक 23-04-2012 से 9 प्रतिशत का वार्षिक साधारण ब्याज भी देने का आदेश दिया।

(वाद संख्याः 95/2012, निर्णय दिनांकः 16-01-2013)
       

09 फ़रवरी, 2013

प्लांटेशन के लिए 50 पौधे दें


मुरादाबाद निवासी आशुतोष सिंह के परिवाद पर न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम (प्रथम) ने प्रतिवादी शिवशक्ति बायो प्लानटेक लिमिटेड मुरादाबाद के खिलाफ निर्णय देते हुए 50 सागौन के पौधे देने का आदेश दिया।
इस परिवाद में आशुतोष सिंह की शिकायत थी कि विपक्षी शिवशक्ति बायोटेक प्लानटेक लिमिटेड से उसने 50 युनिट यानि 500 नग सागौन के पौधे 34,900 रुपए में खरीदा। इसके लिए 

दिनांक 27.10.2010 को 2000 रुपए एडवांश देकर एक एग्रीमैंट किया। विपक्षी द्वारा पौध उपलब्ध कराए जाने के बाद बकाया 32,900 रुपए दिनांक 08.11.2010 को चेक द्वारा अदा कर दिए गए। वादी का कथन था कि पौध की नस्ल बेहद खराब थी। उक्त खरीद गए पौधे सही रूप से नहीं बढ़े और नष्ट हो गए। उसे जो पौधे दिए गए थे वो बिल्कुल बेकार किस्म के थे। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की ग। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से उपभोक्ता न्यायालय में 34900 रुपए सम्पूर्ण खरीद मूल्य के साथ-साथ पौध लगवाने में आया खर्च, देखभाल पर हुए व्यय, वाद खर्च तथा क्षतिपूर्ति प्रापित हेतु अपना दावा दाखिल किया।
            प्रतिवादी का कथन था कि उसके और वादी के बीच दिनांक 27.10.2010 को एक सेल एग्रीमैंट निष्पादित हुआ था जिसके अनुसार पैसा वापस नहीं किया जाएगा, पौधे मरने की दशा में 10 फीसदी से ज्यादा बदली नहीं की जाएगी। विपक्षी का कहना ये भी था कि एग्रीमैंट के मुताबिक प्रस्तुत फोरम को विवाद का निर्णय करने का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
            न्यायालय द्वारा परिवादी का परिवाद -पत्र आंशिक रूप से स्वीकृत करते हुए विपक्षीगण को 50 सागौन के पौधे दिनांक 01.02.2013 से 28.02.2013 के बीच वादी को उपलब्ध कराए जाने के आदेश दिए।

(परिवाद संख्या- 48/2011, निर्णय दिनांक- 22-01-2013  )



08 फ़रवरी, 2013

आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस को पैसे लौटाने पड़े


मुरादाबाद उत्तर प्रदेश के न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम (प्रथम) ने जाकिर हुसैन के परिवाद पर निर्णय देते हुए कहा कि आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस को पालिसी बाण्ड प्राप्त होने 15 दिनों के अन्दर निरस्ती आवेदन होने के कारण परिवादकर्ता को उसके 30000 रुपए मय 5000 हर्जे-खर्चे के साथ लौटाने होंगे।
                              
मामले के अनुसार वादी शिकायतकर्ता ने मार्च, 2010 में विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस से एक बीमा पालिसी ली थी जिसके प्रथम प्रीमियम का भुगतान चेक द्वारा 30.03.2010 को कर दिया गया था। उस वक्त विपक्षी द्वारा कहा गया कि वादी को एक माह के अन्दर बीमा पालिसी बाण्ड भेज दिया जाएगा किन्तु आठ माह तक शिकायतकर्ता को बाण्ड नहीं भेजा गया जबकि इस बावत शिकायतकर्ता ने अनेकों बार विपक्षीगण को सूचित भी किया। तकरीबन आठ माह बाद जब परिवादी को पालिसी बाण्ड मिला तो पता चला कि यह बाण्ड उसे दिए गए आश्वासन और मर्जी के मुताबिक नहीं है, जिससे असंतुष्ट होकर उसे निरस्त कराने का प्रार्थना-पत्र दिनांक 08.11.2010 को मय पालिसी बाण्ड विपक्षी को दे दिया। विपक्षीगण का कहना था कि दिनांक 29.03.2010 को ही पालिसी बाण्ड पालिसी होल्डर के एजेंट को भेज दिया गया था। विपक्षीगण का यह भी कहना था कि इंश्योरेंस रेग्यूलेटरी एवं डेवलपमैंट अथारिटी रेग्यूलेशन के नियमों के अनुसार यदि पालिसी होल्डर पालिसी की भर्ती से संतुष्ट नहीं है तो वह पालिसी को 15 दिन में वापस कर सकता है चूँकि इस 'फ्री लुक' पीरियड में पालिसी को निरस्त कराने का आवेदन नहीं किया गया इस लिए पालिसी निरस्त कर धनराशि लौटाई नहीं जा सकती है।
किन्तु न्यायालय ने पत्रावलियों और साक्ष्यों के अवलोनोपरान्त पाया कि परिवादी को पालिसी बाण्ड 03.11.2010 को मिला माना जाएगा। दिनांक 08.11.2010 को वादी ने इसे निरस्त करने का आवेदन विपक्षीगण को दिया जो नियमानुसार सही है।
         इस तरह परिवादी जाकिर हुसैन का परिवाद 35000/ रुपए की धनराशि के लिए विपक्षीगण यानि आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल के खिलाफ़ स्वीकार किया और निर्णय की तिथि से पैसे की वसूली तक 8 फ़ीसदी साधारण ब्याज की दर से धनराशि अदा किए जाने का आदेश पारित किया।

(परिवाद संख्या- 75/2011, निर्णय दिनांक- 30-01-2013)