19 मार्च, 2013

खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर IRCTC पर जुर्माना


नयी दिल्ली निवासी जीएल अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ शताब्दी ट्रेन संख्या 2016 से यात्रा कर रहे थे। रजिस्टर्ड वेण्डर द्वारा परोसे गए खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर उन्होंने इसकी शिकायत कन्ज्यूमर फोरम(द्वितीय), नई दिल्ली से की जिस पर फोरम ने IRCTC पर रुपए 80000/  का जुर्माना लगा दिया।
मामले के संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता सप्तनी जयपुर से दिल्ली तक की यात्रा शताब्दी एक्सप्रेस से कर रहा था। जब उन्हें रात का खाना परोसा गया तो उन्होंने पाया की पनीर करी में काँच का टुकड़े हैं। जो कतई खाने लायक नहीं थी। उन्होंने तुरन्त अपनी शिकायत (संख्या- 161201) दर्ज कराई। घटिया क्वालिटी के खाने के कारण शिकायतकर्ता की तबियत खराब हो गई और उसे अपने को डाक्टर को दिखाना पड़ा। चार से पाँच दिन वो डाक्टर के निगरानी में रहे तकरीबन 5000 रुपए भी खर्च किए।
नार्दन रेलवे बड़ौदा हाउस, जो कि इस केस में प्रथम विपक्षी पार्टी थी, कोर्ट में कोई जवाबदावा दाखिल नहीं किया। विपक्षी संख्या-2 (IRCTC, NEW DELHI) ने लगाए गए आरोपों को खारिज़ कर दिया। लेकिन ये स्वीकार किया कि 3 जून, 2008 को ई मेल से उन्हें शिकायत प्राप्त हुर्इ थी। जिस पर कार्यवाही करते हुए उसने रजिस्टर्ड वेण्डर पर 5000 रुपए का जुर्माना कर दिया साथ ही चेतावनी भी दी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उल्लिखित 14(i)(d) में मुआवजे को सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण बनाम बलबीर सिंह (2004)7 CLD 861 (SC) के वाद में वृहद व्याख्या करते हुए कहा कि-

'शब्द मुआवजे का अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें वास्तविक हानि, संभावित हानि और इसका विस्तार शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक पीड़ा, अपमान, या चोट के नुकसान तक हो सकता है। कमीशन या फोरम न केवल सामान की कीमत बल्कि उपभोक्ता को हुए नुकसान की भरपाई मुआवजे के रूप में कर सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अघिनियम के विभिन्न खण्ड एक उपभोक्ता को उसके खिलाफ होने वाले अन्याय के लिए निवारण हेतु उसके दावे को और सशक्त बनाते हैं।'

उपरोक्त तथ्यों व बहस के आधार पर उपभोक्ता न्यायालय ने रुपए 80,000/ (रुपए अस्सी हजार मात्र) का बतौर मुआवजा शिकायतकर्ता को अदा किए जाने का आदेश दिया।


(वाद संख्या- 41/2008, निर्णय दिनांक- 19.04.2010

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