
मामले के अनुसार परिवादी मदन लाल ने एक लैण्डलाइन ब्राडबैण्ड कनेक्शन विपक्षी BSNL से लिया था। विपक्षी द्वारा 01.06.2011 से 30.06.2011 तक का बिल 388/ रुपए भेजा गया था जिसे परिवादी ने जमा कर दिया लेकिन जब अगले माह पुन: बिल आया तो पुराना बिल भी उसमें जुड़ा हुआ था जो परिवादी द्वारा पहले ही जमा कर दिया गया था। इसी तरह BSNL ने कुछ और भी आगे के बिल भेजे जबकि सभी बिलों का भुगतान किया जा चुका था बावजूद इसके परिवादी का टेलीफोन विच्छेद कर दिया गया। हैरान-परेशान होने के बाद परिवादी मदन लाल ने उपभोक्ता न्यायालय में वाद दायर कर दिया।
न्यायालय में विपक्षी ने कहा कि उपभोक्ता ने अपना पहला बिल डबली राठान दूरभाष केन्द्र पर जमा किया था। नई बिलिंग चण्डीगढ़ से होने के कारण पिछला बकाया जुड़कर आ गया। फोन बन्द होने का कारण तकनीकी फाल्ट बताया और कहा कि चूँकि मौजूदा मामले में विवाद बिलों की बावत है इसलिए इसकी सुनवाई इस न्यायालय में नहीं होनी चाहिए।
न्यायालय विपक्षी द्वारा पेश की गई रूलिंग 2009 डीएनजे सुप्रीम कोर्ट पेज नम्बर 1067 का अध्ययन करने के बाद इस वाद को स्वीकार किया और विपक्षी बीएसएनएल को आदेशित किया कि परिवादी से अधिक वसूले गए 53 रुपए लौटाए साथ ही 43 दिनों तक बन्द रहे टेलीफोन की अवधि के किराए में छूट की गणना कर उसे आगामी बिल में समायोजित करें व मानसिक परेशानी के 2100/ रुपए व परिवाद व्यय के 2100/ रुपए का भुगतान भी परिवादी को एक माह के अन्दर करें।
(वाद संख्या- 87/2012, निर्णय दिनांक- 17.01.2013)
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