07 अप्रैल, 2010

ग्राहक सेवा में कमी, दुकानदार दण्डित

ग्राहक की सेवा में कमी व ग्राहक को परेशान करने वाले दुकानदार को इलाहाबाद उपभोक्ता अदालत ने एक हजार रुपये ज़ुर्माने से दण्डित किया है, उक्त आदेश फ़ोरम के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश व सदस्य श्रीमती छाया चक्रवर्ती व खुरशीद हबीब खान ने दिया है. मामला ये था कि याची सुरेन्द्र कुमार पुत्र छोटे लाल साहू निवासी पुराना कटरा इलाहाबाद मे एक मोबाइल सेट दुकानदार चूड़ी नगर, पुराना कटरा (ओम साईं काम्पलेक्स) से लिया था जो तीन माह तक ठीक चलने के बाद खराब हो गया. उपभोक्ता द्वारा शिकायत करने के बाद भी दुकानदार सेट बदलने को तैयार नहीं हुआ. याची ने फ़ोरम की शरण ली और न्याय की गुहार लगाई. फ़ोरम ने विपक्षी को तलब किया लेकिन वह फ़ोरम में न तो हाजिर हुआ और न ही अपना ज़वाब पेश किया. फ़ोरम ने कई अवसर दिए फ़िर एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए उक्त दुकानदार को एक हजार रुपये के ज़ुर्माने से दण्डित किया और कहा कि न केवल ख़राब मोबाइल सेट बदल कर दूसरा सेट उसी कीमत का दे बल्कि पाँच सौ रुपये मुकदमे का ख़र्च भी वादी को दे.

29 मार्च, 2010

बीमा कम्पनी को लगभग 1 लाख 79 हजार की राशि लौटाने का आदेश

जिला उपभोक्ता अदालत बिलासपुर ने अपने एक अहम फ़ैसले में नैशनल इंश्योरेंस कम्प्नी को 1'79,900 रुपये 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज देने का आदेश पारित किया. शिकायतकर्ता के अधिवक्ता आर.के.रघु ने बताया कि उपभोक्ता उपेन्द्र सिंह ने एक कार गगन कुमार से 4 सितम्बर, 2004 को खरीदी थी लेकिन वो गाडी़ 24 सितम्बर, 2004 को धर्मशाला में क्षतिग्रस्त हो गई, उसके उपरान्त उपेन्द्र सिंह ने क्षतिग्रस्त गाड़ी का क्लेम लेने के लिए बीमा कम्पनी के पास अपना अपना दावा पेश किया लेकिन बीमा कम्पनी ने यह कहकर दावा खारिज़ कर दिया कि बीमा की पालिसी नए मालिक के नाम ट्रांसफ़र नहीं हुई है जिस कारण क्लेम का भुगतान नहीं किया जा सकता है लेकिन उपभोक्ता फ़ोरम ने कम्पनी की दलील को नकारते हुए बीमा की राशि पर ब्याज सहित तथा मामला दायर करने में शिकायतकर्ता के खर्च के रूप में दो हजार रुपये अदा करने के आदेश दिए.

27 मार्च, 2010

वाशिंग मशीन की पूरी कीमत अदा करें





दुर्ग जिला उपभोक्ता फोरम ने सेवा में कमी के एक मामले में वाशिंग मशीन विक्रेता, सुधारक व एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी के प्रबंधक को संयुक्त रूप से ग्राहक को वाशिंग मशीन की कीमत अदा करने हेतु निर्देशित किया है। इस मामले में वाशिंग मशीन खरीदी के एक वर्ष बाद ही खराब हो गई थी। प्रकरण के अनुसार परिवादी लवकुश सिंगरोल ने 6 जुलाई 2007 को मोतीपारा स्टेशन रोड में जायसवाल इलेक्ट्रॉनिक की दुकान से 12 हजार 498 रुपए नकदी देकर एलजी कंपनी की वाशिंग मशीन खरीदा था। विक्रेता ने मशीन की पाँच वर्ष की वारंटी होना बताया था।
इसके अलावा यह भी बताया गया था कि विक्रय एक वर्ष के भीतर मशीन में खराबी आने से यदि वह सुधारने लायक नहीं रही तो नई मशीन दी जाएगी। मशीन घर लाने पर वह पहले दिन से ही सही ढंग से काम नहीं कर रही थी, जिसकी शिकायत परिवादी ने दुकानदार से की। दुकानदार ने सुधार कार्य के लिए मिस्त्री घर भेजा। अधिकृत मिस्त्री द्वारा भी मशीन की खराबी दूर नहीं की जा सकी। दुकानदार ने उक्त मशीन को सुधारने के लिए एक अधिकृत सुधारक ब्लॉक नंबर 6/4 प्रियदर्शनी परिसर सुपेला स्थित हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स में भेजा। उक्त अधिकृत सर्विस सेंटर में मशीन को 4 माह तक रखा गया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बार-बार तकादा करने पर 14 जुलाई 2008 को यह कहते हुए कि मशीन सुधार दी गई है। मशीन को रिक्शे में लोड करवाकर प्रार्थी के घर भेज दी गई, लेकिन मशीन खराब थी। घटिया स्तर की वाशिंग मशीन विक्रय कर व्यावसायिक दुराचरण एवं सेवा में कमी के मामले में परिवादी ने जायसवाल इलेक्ट्रॉनिक्स, एलजी कंपनी के सामानों के अधिकृत सुधारक प्रियदर्शनी परिसर सुपेला स्थित हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स नोएडा (यूपी) के खिलाफ जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद पेश किया। परिवाद की सुनवाई पश्चात फोरम के अध्यक्ष महेंद्र राठौर व सदस्य तृप्ति शास्त्री व शुभा सिंह ने परिवादी के पक्ष में आदेश दिया।

26 जनवरी, 2010

भोजन में अण्डे का छिलका निकलने पर इंडियन एयरलाइंस को मुआवजा देने का निर्देश



राज्य उपभोक्ता आयोग ने इंडियन एयरलाइंस को उसके एक यात्री को 50,000 मुआवजा देने का निर्देश दिया है। यात्री केशव कौशिक ने शिकायत थी कि मुंबई से दिल्ली के सफर के दौरान मेरे खाने में अंडे का छिलका निकला था। पेशे से वकील, कौशिक के अनुसार 22 फरवरी 2003 में किए गए इस सफर के दौरान मैंने एयर होस्टेस को बताया था कि मैं शाकाहारी हूं। इसके बावजूद भी मुझे नाश्ते में जो केक दिया गया था उसे खाते वक्त मेरे मुंह में अंडे का छिलका आ गया था। जिसके बाद मैं बेहोश हो गया था। वहां मौजूद कर्मचारी और यात्रियों ने मेरी मदद की। दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरने के बाद मैंने उपभोक्ता अदालत में शिकायत की थी।

कौशिक ने अपनी शिकायत में कहा था कि इस घटना के करीब 35 दिन बाद उन्हें एबडॉमन हैमरेज हो गया था जिसकी वजह से उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती होकर शल्य चिकित्सा करानी पड़ी थी। आयोग ने हालांकि उनकी इस दलील को खारिज कर दिया क्योंकि वह कोई चिकित्सीय सबूत नहीं पेश कर पाए।आयोग के अध्यक्ष बरकत अली जैदी ने कहा कि इस मामले में उस एयरलाइंस स्टाफ की लापरवाही साफ है जिसने वह केक तैयार किया था जिसमें अंडे का छिलका पाया गया। लेकिन फिर भी इस घटना को एक हादसा ही माना जाएगा। इसके अलावा एयरलाइंस अपनी गलती मान रही है और माफी मांगने को तैयार है। एयरलाइंस ने शिकायतकर्ता को दो मुफ्त टिकट भी प्रस्तावित किए थे।

23 जनवरी, 2010

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को पॉलिसी धारक की दवा निरस्त करना महँगा पड़ा



बीमा कंपनी द्वारा मेडिक्लेम पॉलिसीधारक को पुरानी बीमारी के नाम पर दावा निरस्त किए जाने को मुंबई की जिला उपभोक्ता अदालत ने गलत ठहराया है और बीमा कंपनी को ब्याज के साथ मेडिक्लेम देने का आदेश दिया है। बीमा कंपनी अदालत में यह साबित करने में नाकामयाब रही कि ग्राहक को पॉलिसी लेने से पहले दिल की बीमारी थी।

इस मामले में, मुंबई के सान्ताक्रूज इलाके में रहनेवाले राम अग्रवाल ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से 5 लाख रुपये की गुड हेल्थ मेडिक्लेम पॉलिसी खरीदी थी। जून 2000 से मई 2001 तक इस पॉलिसी में सभी बीमारियां शामिल थीं। मेडिक्लेम लेने के दो महीने बाद ही राम अग्रवाल सूखी खांसी से ग्रसित हो गए। ब्रीच कैंडी अस्पताल से एंजियोग्रॉफी करवाने के बाद अग्रवाल को पता चला कि उन्हें बाईपास सर्जरी करवानी पड़ेगी। अग्रवाल को 4.25 लाख रुपये की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से 44,315 रुपये एंजियोग्रॉफी के लिए और 3,81,109 रुपये सर्जरी के लिए दावा किया। लेकिन न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने उनका दावा यह कहकर खारिज कर दिया कि यह बीमारी उनको पॉलिसी लेने से पहले से है इसलिए वे दावे के हकदार नहीं हैं।

इसके बाद अग्रवाल ने इसकी शिकायत 2004 में राज्य की जिला उपभोक्ता अदालत में की। 2005 में राम अग्रवाल की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी कुसुम अग्रवाल ने इस मामले को जारी रखा। अग्रवाल के वकील उदय वावीकर ने उपभोक्ता अदालत के सामने यह दलील पेश की कि अग्रवाल द्वारा पॉलिसी लिए जाने के दौरान उन्हें अपनी बीमारी की कोई खबर नहीं थी और न ही इंश्योरेंस कंपनी के पास कोई सबूत है कि अग्रवाल ने अगस्त 2001 से पहले इस बीमारी का इलाज करवाया हो .उपभोक्ता अदालत ने अग्रवाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए न्यू इंडिया इंश्योरंस कंपनी को आदेश दिया कि वह दिनांक 8 अगस्त 2001 से 9 फीसदी ब्याज दर के साथ उपभोक्ता को 4.24 लाख रुपये की रकम अदा करे। साथ ही दो हजार रुपये मुआवजा और एक हजार अदालती खर्च के दे। उदय वावीकर ने मीडिया को बताया कि मेडिक्लेम पॉलिसी लेते समय कंपनियां ग्राहकों को काफी कुछ नहीं बतातीं। इसलिए ग्राहक भी परशान हो जाते हैं। मेडिक्लेम जैसी पॉलिसी लेते समय ग्राहकों को छोटी से छोटी जानकारी लेनी आवश्यक है।

 

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपील संबन्धी प्रक्रिया

यदि शिकायत सब से पहले किसी राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष धारा 17 के अंतर्गत प्रस्तुत की गई थी और उस पर किसी राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा आदेश पारित किया है तो आप इस आदेश के पारित किए जाने की तिथि से 30 दिनों के भीतर अपनी अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। यह अपील प्रथम अपील कही जाएगी।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष उपभोक्ता अधिनियम-1986 के अंतर्गत प्रथम अपील राष्ट्रीय आयोग के पंजीकरण विभाग में निम्न प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है...

   1. अपील आयोग के कार्य दिवसों पर सुबह 10.00 बजे से साँय 4.30 बजे के बीच जनपथ, नई दिल्ली स्थित जनपथ भवन की बी' विंग के सातवें तल  पर स्थित पंजीकरण विभाग में प्रस्तुत की जा सकती है;
   2. प्रथम अपील के साथ उस के समर्थन में शपथ पत्र संलग्न होना आवश्यक है;
   3. अपील को फाइल कवर सहित पेपर बुक के रूप में होना चाहिए और उस की चार प्रतियाँ राष्ट्रीय कमीशन के लिए तथा एक एक प्रति प्रत्येक उत्तरदाता के लिए संलग्न होनी चाहिए, सभी प्रतियाँ प्रत्येक पृष्ट पर पृष्ट क्रमांक अंकित होना चाहिए तथा अनुक्रमणिका के साथ होनी चाहिए। अनुक्रमणिका निम्न प्रकार होना चाहिए...

   1.         अनुक्रमणिका  (Index)
   2.         तिथियों की सूची  (List of Dates)
   3.         पक्षकारों का विवरण (Memo of Parties)
   4.         अपील शपथ पत्र सहित (Appeal with affidavit)
   5.         स्थगन प्रार्थना पत्र शपथ पत्र सहित, यदि आवश्यक हो   (Stay Application with affidavit, if required)
   6.         अवधि का विवरण {आदेश से 30 दिन}     (Limitation, if any {Within 30 days of receipt of order})
   7.         राज्य आयोग के आदेश की प्रमाणित प्रति    (Certified copy of order of State Commission)
   8.         कोई अन्य दस्तावेज जो आवश्यक हो           (Any other documents require)
   9.         रजिस्ट्रार एनसीडीआरसी नई दिल्ली के नाम डिमाण्ड ड्राफ्ट    (Demand Draft {in the name of “The Registrar, NCDRC, New Delhi”}

उक्त के अतिरिक्त निम्न सावधानियाँ भी रखी जानी आवश्यक हैं...

   1. अपील और सभी दस्तावेज अंग्रेजी में होने चाहिए, यदि दूसरी भाषा में हों तो उन का अंग्रेजी अनुवाद साथ संलग्न किया जाए।
   2. यदि ऊपर वर्णित क्रम में दस्तावेजों को नहीं लगाया गया तो अपील वापस लौटा दी जाएगी और तभी प्राप्त और रजिस्टर की जाएगी जब उन की कमियाँ पूरी कर ली जाएँगी।
   3. अपील सुनवाई हेतु स्वीकार हो जाने के उपरांत कोई भी दस्तावेज तभी प्राप्त किया जाएगा जब कि उस की प्रतियाँ विपक्षी पक्षकारों को सुनवाई की तिथि को दो दिन पूर्व दे दी गई हों और दिए जाने का प्रमाण संलग्न हो।

राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील पेश करने के लिए उक्त प्रक्रिया आवश्यक है। हमारा सुझाव है कि यह एक  जानकारी और अभ्यास का काम है और वहाँ पैरवी करना भी एक विशिष्ट काम है। जरूरी है कि इस काम के लिए किसी वकील की सेवाएँ प्राप्त की जाएँ।

स्टेट बैंक के विरुद्ध पन्द्रह हजार का ज़ुर्माना


इलाहाबाद उपभोक्ता फ़ोरम ने स्टेट बैंक, फ़ाफ़ामऊ के विरुद्ध पन्द्रह हजार रुपया ज़ुर्माना ठोंका है. मामला ये है कि याची गिरीश चन्द्र यादव निवासी सलेमपुर, देवरिया जो कि केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल का सिपाही है, 13 फ़रवरी सन 2009 को स्टेट बैंक शाखा फ़ाफ़ामऊ के ए.टी.एम. से दो हजा़र रुपये निकालने के लिए गया था. उसने भूलवश बीस हजा़र रुपये के लिए बटन दबा दिया. इसी तिथि में वह इलाहाबाद स्थित तेलियर गंज एटीएम में गया और दो हजार पाँच सौ रुपये की निकासी की तो मिनी स्टेटमेंट से पता चला की फ़ाफ़ामऊ स्थित एटीएम से बीस हजार रुपये डेबिट हो गया है, जब इस बावत संबंधित शाखा प्रबन्धक से बातचीत की तो बताया गया कि मशीन काम नहीं कर रही थी. आपका पैसा आपके खाते में पहुँच जाएगा. विपक्षीगण ने अपने ज़वाब में कहा कि प्रश्नगत तिथि पर मशीन ख़राब नहीं थी, उपभोक्ता ने बीस हजार रुपये निकाला है. मुकदमा खारिज़ किए जाने योग्य है. जबकि यह बात तथ्यों की जाँच में गलत निकली. फ़ोरम ने आदेश दिया कि भारतीय स्टेट बैंक, फ़ाफ़ामऊ बीस हजार रुपये याची को भुगतान करे तथा पन्द्र्ह हजार रुपये बतौर ज़ुर्माना भी उसको दे. इलाहाबाद उपभोक्ता फ़ोरम के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश, सदस्य
श्रीमती छाया चक्रवर्ती, सदस्य खुर्शीद हबीब ने भारतीय स्टेट बैंक को यह भी आदेशित किया कि दोषी बैंक कर्मियों के खिलाफ़ कार्रवाही करे.