25 फ़रवरी, 2013

स्टेट बैंक आफ इन्दौर को चैक डिसआनर करना महँगा पड़ा



स्टेट बैंक आफ इन्दौर की मुम्बई-आगरा रोड, इन्दौर की शाखा को नरेन्द्र कुमार के बचत खाता में पैसा होने के बावजूद चैक डिसआनर करना महँगा पड़ गया उसे 10000/ रुपए के मानसिक संत्रास के साथ ही शिकायतकर्ता को 1000/ रुपए परिवाद खर्च भी अदा करना पड़ा।
            शिकायतकर्ता के मुताबिक उसने दिनांक- 23.11.2009 को पालिसी के नवीनीकरण हेतु 2233/ रुपए प्रीमियम का भुगतान चैक से किया था जो 19.11.2009 दिनांकित था। विपक्षी के द्वारा 22.11.2009 को "टू डेज़ ओपनिंग बैलेंस इनसफीसिएन्ट" के टिप्पणी के साथ चैक अनादृत कर दिया। जबकि उस दिनांक तक परिवादी के बचत खाते में 8209.85 रुपए की राशि थी। शिकायतकर्ता का कथन था कि बैंक की इस लापरवाही की वजह से उसकी मेडीक्लेम पालिसी की निरन्तरता भंग हो गई पालिसी निरस्त कर दी गई परिवादी का बोनस व मेडीक्लेम का अधिकार समाप्त हो गया। 
            विपक्षी बैंक की ओर से 2004 एम.पी.डब्ल्यू.एम. वाल्यूम शार्ट नोट 1999/ की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया गया कि जिस पक्षकार के पास सर्वोत्तम साक्ष्य उपलब्ध हो, भले ही उस पर सबूत का भार न हो तो भी सर्वोत्तम साक्ष्य पेश नहीं की हो तो 'एडवर्स इन्फ्रेंस" निकाला जाना चाहिए। 

            परिवादी की ओर से 2010(4) एम.पी.एल.जे. पेज 9 की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया कि जब विपक्षी की लापरवाही स्पष्ट रूप से प्रतीत हो तो 'रेस्इस्पा लाक्यूटर" का सिद्धांत लागू होगा। परिवादी को कुछ भी साबित नहीं करना होता है, क्योंकि बातें स्वयं सिद्ध हो जाती हैं।
            न्यायालय ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों का अवलोकन करने पर पाया कि परिवादी के खाते में उस दिनांक तक पर्याप्त रक़म थी जिस दिनांक को बैंक ने चैक डिसआनर किया। इस तरह चैक का डिसआनर करना सेवा में त्रुटि है।
            न्यायालय ने विपक्षी स्टेट बैंक आफ इन्डिया को मानसिक संत्रास के 10,000/ रुपए व परिवाद व्यय के 1000/ रुपए परिवादी को दिए जाने का आदेश दिया।

(वाद संख्या- 541/09, दिनांक- 08.01.2013)


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