21 अप्रैल, 2013

ब्याज सहित वापस की भूखण्ड की धनराशि वापस करने का आदेश

धन जमा होने के बावजूद मै. एम.टेक. डेवलपर्स को भूखण्ड न देना महँगा पड़ गया। जिला उपभोक्ता फोरम प्रथम ने कानपुर रोड लखनऊ निवासी शोभा गुप्ता की शिकायत पर आदेश दिया कि एम.टेक. डेवलपर्स शोभा गुप्ता द्वारा जमा किए गए 55 हजार रुपए मय सात फीसदी ब्याज वापस करे।
शोभा गुप्ता ने एम.टेक. सिटी लखनऊ में 200 वर्ग गज का एक प्लाट खरीदने के लिए मै. अशोका प्रापर्टिज के माध्यम से एक लाख पचपन हजार रुपए जमा किए थे। छह माह बीत जाने के बाद भी जब प्लाट नहीं दिया गया तो शोभा गुप्ता ने जमा किए गए धन को वापस करने की माँग की। दो साल बाद एम.टेक. डेवलपर्स ने शोभा गुप्ता को एक पत्र भेजा कि जुलाई, 2009 में बुकिंग वापस लेने के बाद ही रकम वापस की जाएगी। इस पर शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस भेजी जिसका कोई जवाब कम्पनी ने नहीं दिया। इसके बाद फोरम में शिकायत दर्ज की गई। फोरम में शिकायत दर्ज होने के बाद बिल्डर ने दो किस्तों में 50-50 हजार रुपए लौट दिए। शेष पचपन हजार रुपए न लौटाए जाने की शिकायत शोभा ने अपने वकील के माध्यम से फोरम से की। फोरम प्रथम के अध्यक्ष विजय वर्मा, न्यायिक सदस्य राजर्षि शुक्ल और वीना अरोरा ने विपक्षी को आदेश दिया कि एक माह के भीतर सात फीसदी ब्याज के साथ रुपया वापस करे साथ में 2000 हजार रुपए मानसिक क्षतिपूर्ति के व एक हजार रुपए वास व्यय के भी अदा करे।

(जिला उपभोक्ता फोरम प्रथम,  लखनऊ)

09 अप्रैल, 2013

ग़लत रिपोर्ट के लिए पैथोलाजी पर जुर्माना


पैथोलाजी रिपोर्ट जिस पर रोग की पहचान निर्भर करती है यदि ग़लत हो तो कल्पना कीजिए कि मरीज़ की क्या हालत होगी। ऐसे ही एक मामले में जिला उपभोक्ता फोरम द्वितीय लखनऊ ने महानगर सिथत सरकार डायगनासिटक्स को आदेश दिया कि वह इनिदरा नगर निवासी  लीलावती को अलग-अलग पैथालाजी में कराई गई जाँच में व्यय हुए 600/ रुपए अदा करे। फोरम ने इसके अलावा
 शिकायतकर्ता को हुए मानसिक क्षति के लिए 6000/ हजार और वाद व्यय के लिए 2 हजार रुपए अलग से देने के आदेश भी दिए।
लीलावती के पति एसएन कुशवाहा के पेट में तक़लीफ थी। डाक्टर ने हीमोग्लोबिन की जाँच कराने के लिए कहा। भुक्तभोगी ने सरकार डायग्नासिटकस से जाँच कराई, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार हीमोगलोबिन 5.6 मीग्रा था। इलाज़ कर रहे डाक्टर ने रिपोर्ट के आधार पर खून चढ़ाने की राय देते हुए किसी और पैथोलाजी से एक बार फिर से जाँच कराने को कहा। इसके दो अलग-अलग जाँच कराई गई, जिसमें हीमोग्लोबिन 12.4 व 12.2 मिग्रा पाया गया। फोरम दो के अध्यक्ष् आर.पी. पाण्डेय व सदस्य राजेन्द्र गुप्ता, सीमा भार्गव ने साक्ष्यों के आधार पर फैसला देते हुए आदेश दिया कि डायागनासिटक पैथोलाजी में हुए खर्च के 600/ रुपए व मानसिक कष्ट के लिए 6000/ तथा वाद व्यय के 2 हजार रुपए अलग से देने के आदेश दिया

( दिनांक- 02.04.2013, दैनिक जागरण, लखनऊ)

22 मार्च, 2013

त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत मानसिक क्षतिपूर्ति के साथ वापसी के आदेश


रायबरेली उत्तर प्रदेश निवासी अनुभव भार्गव की खरीदी गई नई बैटरी के वारंटी अवधि के दौरान खराब हो जाने के बाद भी न बदले जाने पर उपभोक्ता फोरम रायबरेली ने 7000/ रुपए मानसिक क्षतिपूर्ति के साथ त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत लौटाने का आदेश दिया।
मामले के अनुसार रायबरेली के अनुभव भार्गव ने राना नगर, रायबरेली सिथत पप्पू बैटरी से एक इन्वर्टर मय टयूबलर बैटरी दिनांक 03.07.2010 को रुपए 8000/ में खरीदी थी। जिस पर विक्रेता ने 24 माह की वारंटी दी थी। लेकिन शिकायत अनुभव ने विक्रेता से की। लेकिन विक्रेता द्वारा आश्वासन तो दिया गया पर बैटरी ठीक नहीं की गई और न ही बदली की गई। हैरान-परेशान होने के बाद अनुभव ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक लीगल नोटिस विक्रेता को भेजी। जिसका प्रत्युत्तर न मिलने पर इसकी शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 12 के तहत उपभोक्ता न्यायालय रायबरेली से की।
चूँकि विपक्षी पप्पू बैटरी की तरफ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हुआ और न ही अपना जवाबदावा दाखिल किया जिसपर कोर्ट ने एकपक्षीय कार्यवाही करते हुए परिवाद का निस्तारण शिकायतकर्ता के पक्ष में करते हुए कहा कि विपक्षी त्रुटिपूर्ण बैटरी की पूरी कीमत रुपए 8000/ व मानसिक व शारीरिक क्षति के 7000/ रुपए तथा 1000/ रुपए परिवादी को निर्णय की तिथि से दो माह के अन्दर अदा करे, अन्यथा समस्त धनराशि पर परिवादी विपक्षी से निर्णय की तिथि से 8 फीसदी वार्षिक साधारण व्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

(वाद संख्या- 217/2011,  निर्णय दिनांक- 08.01.2013)

19 मार्च, 2013

खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर IRCTC पर जुर्माना


नयी दिल्ली निवासी जीएल अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ शताब्दी ट्रेन संख्या 2016 से यात्रा कर रहे थे। रजिस्टर्ड वेण्डर द्वारा परोसे गए खाने में काँच के टुकड़े निकलने पर उन्होंने इसकी शिकायत कन्ज्यूमर फोरम(द्वितीय), नई दिल्ली से की जिस पर फोरम ने IRCTC पर रुपए 80000/  का जुर्माना लगा दिया।
मामले के संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता सप्तनी जयपुर से दिल्ली तक की यात्रा शताब्दी एक्सप्रेस से कर रहा था। जब उन्हें रात का खाना परोसा गया तो उन्होंने पाया की पनीर करी में काँच का टुकड़े हैं। जो कतई खाने लायक नहीं थी। उन्होंने तुरन्त अपनी शिकायत (संख्या- 161201) दर्ज कराई। घटिया क्वालिटी के खाने के कारण शिकायतकर्ता की तबियत खराब हो गई और उसे अपने को डाक्टर को दिखाना पड़ा। चार से पाँच दिन वो डाक्टर के निगरानी में रहे तकरीबन 5000 रुपए भी खर्च किए।
नार्दन रेलवे बड़ौदा हाउस, जो कि इस केस में प्रथम विपक्षी पार्टी थी, कोर्ट में कोई जवाबदावा दाखिल नहीं किया। विपक्षी संख्या-2 (IRCTC, NEW DELHI) ने लगाए गए आरोपों को खारिज़ कर दिया। लेकिन ये स्वीकार किया कि 3 जून, 2008 को ई मेल से उन्हें शिकायत प्राप्त हुर्इ थी। जिस पर कार्यवाही करते हुए उसने रजिस्टर्ड वेण्डर पर 5000 रुपए का जुर्माना कर दिया साथ ही चेतावनी भी दी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उल्लिखित 14(i)(d) में मुआवजे को सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण बनाम बलबीर सिंह (2004)7 CLD 861 (SC) के वाद में वृहद व्याख्या करते हुए कहा कि-

'शब्द मुआवजे का अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें वास्तविक हानि, संभावित हानि और इसका विस्तार शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक पीड़ा, अपमान, या चोट के नुकसान तक हो सकता है। कमीशन या फोरम न केवल सामान की कीमत बल्कि उपभोक्ता को हुए नुकसान की भरपाई मुआवजे के रूप में कर सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अघिनियम के विभिन्न खण्ड एक उपभोक्ता को उसके खिलाफ होने वाले अन्याय के लिए निवारण हेतु उसके दावे को और सशक्त बनाते हैं।'

उपरोक्त तथ्यों व बहस के आधार पर उपभोक्ता न्यायालय ने रुपए 80,000/ (रुपए अस्सी हजार मात्र) का बतौर मुआवजा शिकायतकर्ता को अदा किए जाने का आदेश दिया।


(वाद संख्या- 41/2008, निर्णय दिनांक- 19.04.2010

12 मार्च, 2013

छपे मूल्य से अधिक कीमत वसूलने पर IRCTC पर 5 लाख का जुर्माना


द्वारका, नई दिल्ली निवासी एचएम श्रान्या एवं महावीर विहार निवासी, सचिन धीमान की अलग-अलग शिकायत पर कन्ज्यूमर कोर्ट नई दिल्ली ने 'माजा' कोल्ड ड्रिंक पर छपी कीमत से अधिक कीमत वसूले जाने पर IRCTC पर पाँच-पाँच लाख का जुर्माना लगा दिया साथ ही मानसिक संत्रास के भी दस-दस हजार रुपए अलग से देने को कहा।
इस परिवाद में नई दिल्ली निवासी श्रान्या व महावीर विहार, नई दिल्ली निवासी सचिन धीमान ने IRCTC के रिटेल आउटलेट से माजा पेय पदार्थ 15 रुपए में ख़रीदा जबकि उस पर MRP 12 रुपए अंकित थी। श्रान्या व महावीर ने इसकी शिकायत अलग-अलग कन्ज्यूमर कोर्ट से की।
कन्ज्यूमर कोर्ट ने पाया कि इस तरह का व्यवसाय अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के अन्तर्गत आता है। सरकारी कम्पनी जो कि लाखों लोगों को फूड आर्टिकल्स सप्लाई करती है। इस तरह की आशा नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने विभिन्न पहलुओं पर विचारोपरान्त कहा कि IRCTC को 5 लाख रुपए का जुर्माना दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथारिटी, पटियाला हाउस को भरना होगा इसके अलावा 10-10 हजार रुपए को अन्य खर्चे, मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में शिकायतकर्ताओं को अदा करे। यह धनराशि इस आर्डर को प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर दे दी जानी चाहिए, अन्यथा कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट की धारा 25/27 के तहत कार्यवाही की जाएगी।

(वाद संख्या- CC/615/12 CC/621/12, निर्णय दिनांक- 11-03-2013 )

10 मार्च, 2013

डिफैक्ट युक्त प्रोडक्ट की पूरी कीमत वापस करने का आदेश


इंदौर निवासी विजय की शिकायत पर जिला उपभोक्ता न्यायालय इंदौर (म.प्र.) ने विपक्षी आशीर्वाद किचन गैलरी को डिफैक्ट युक्त विक्रीत प्रोडक्ट को वापस कर पूरी कीमत लौटाने का आदेश दिया साथ ही मानसिक संत्रास व परिवाद व्यय के भुगतान भी करने को आदेशित किया।
इस प्रकरण में शिकायतकर्ता विजय ने 5400/ रुपए में नकद भुगतान कर एक मैजिक स्पा (टब) विपक्षी आशीर्वाद किचन गैलरी से दिनांक 30.03.2009 को खरीदा। प्रोडक्ट खरीदते समय डीलर ने व निर्माता कम्पनी ने ये दावा किया था कि मैजिक स्पा (टब) में पाँव रखते ही शरीर की बुराइयाँ पानी में खींच लेता है एवं पानी का कलर धीरे-धीरे बदल जाता है। जब परिवादी ने उसे उपयोग किया तो पाया कि प्रोडक्ट में आर.ओ. टेस्ट करने का सिस्टम जो पानी में घुले हुए मिनरल्स को हिसाब से कलर चेंज करता है। पानी में पाँव रखे बगैर भी पानी का कलर चेंज हो जाता है। जब इस बात की शिकायत परिवादी ने डीलर से की तो उसने प्रोडक्ट लेने से इन्कार कर दिया। परेशान होने के बाद विजय ने इस बावत अपनी शिकायत उपभाक्ता न्यायालय के समक्ष दर्ज कराई।
इस संदर्भ में विपक्षी का कथन था कि हमने प्रोडक्ट बेचते समय की खरीदार को बता दिया था कि इसकी कोई गारंटी या वारंटी नहीं है व बेचा हुआ माल वापस नहीं होगा। उन्हें केवल कमीशन ही मिलता है। उसका ये भी कहना था कि परिवादी ने उक्त प्रोडक्ट का आर्डर दिया था कम्पनी ने क्या विशेषताएँ बताई ये निर्माता कम्पनी व परिवादी के बीच का मामला है। 
परिवादी का कथन था कि उसने प्रोडक्ट आर्डर देकर नहीं बल्कि रेडी स्टाक में डिलवरी ली थी। चूँकि बीजक में या प्रोडक्ट में भी निर्माता का नाम-पता नहीं लिखा था इसलिए विपक्षी ही इसका दोषी है।
न्यायालय ने उभय पक्षों के तर्कों व प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद ये माना कि विपक्षी ने डिफैक्ट युक्त प्रोडक्ट मैजिक स्पा विक्रय कर सेवा में त्रुटि की है। जिसके लिए उसे परिवादी से प्रोडक्ट वापस लेकर पूरी कीमत 5400/ रुपए व 1000-1000 रुपए मानसिक संत्रास तथा परिवाद व्यय के भी परिवादी को अदा करे।

(वाद संख्या- 172/209, निर्णय दिनांक- 28.01.2013)


07 मार्च, 2013

गलत सामान देने पर 'रिलायंस फ्रेश' पर हुआ जुर्माना


रिलायंस फ्रेश द्वारा किंग्स रोड, जयपुर निवासी बालकृष्ण को खरीदे गए प्रोडक्ट के स्थान पर दूसरा प्रोडक्ट देना खासा महँगा पड़ गया, जिला उपभोक्ता संरक्षण द्वितीय, जयपुर ने उपभोक्ता की शिकायत पर न केवल मय ब्याज प्रोडक्ट की पूरी कीमत वापसी का आदेश दिया बल्कि मानसिक संताप और परिवाद व्यय की क्षतिपूर्ति भी दिलाई।
उपभोक्ता बालकृष्ण ने रिलायंस फ्रेश से दिनांक 09.05.2009 को Dove Conditioner Daily Therapy के स्थान पर Dove Conditioner dry Therapy नामक प्रोडक्ट दे दिया और इनवायस में 115/ रुपए जोड़ लिए। जब शिकायतकर्ता इस प्रोडक्ट को बदलने गया तो विपक्षी ने मना कर दिया और उसके साथ बदसलूकी की।
न्यायालय में सुनवाई के दौरान विपक्षी की तरफ से कोई हाजिर नहीं हुआ। जो बिल परिवादी को दिया गया था वो अपठनीय था। न्यायालय ने माना की विपक्षी का व्यवहार 'अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस' को छिपाने का था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा की आदेश की तारीख से दो माह में परिवादी को 115/ रुपए वसूली दिनांक से अदाएगी तक 9 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित अदा करे व मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति स्वरूप 10,000/ रुपए व परिवाद व्यय के 2000/ रुपए भी दें।
उपभोक्ता फोरम के इस आदेश को रिलायंस फ्रेश ने राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (बैंच नम्बर-1) अपील संख्या- 72/2011 के अन्तर्गत अपील की। किन्तु राज्य उपभोक्ता आयोग ने दिनांक 29.01.2013 को सुनाए गए फैसले में जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को बिना किसी रददोबदल के बरकरार रखा।

(वाद संख्या- 599/2009, अपील संख्या- 72/2011निर्णय दिनांक- 05.10.2010 )