28 फ़रवरी, 2013

सैमसंग कम्पनी को लौटाना पड़ा मोबाइल हैंडसैट का पूरा पैसा


जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच जोधपुर (प्रथम) ने वसीम रज्जा की शिकायत पर सैमसंग इण्डिया इलैक्ट्रानिक्स प्राइवेट लिमिटेड को सेवा में त्रुटि के लिए दण्डित करते हुए खरीदे गए मोबाइल हैण्डसैट का पूरा पैसा लौटाने का आदेश दिया, साथ ही आर्थिक व मानसिक क्षति के 2000/ रुपए व परिवाद के रूप में 1500/ रुपए भी दिलाए।
मामले के अनुसार उपभोक्ता वसीम रज्जा ने दिनांक 18.06.2009 को सैमसंग का सुपर हीरो माडल का फोन खरीदा लेकिन कुछ समय बाद ही फोन ने काम करना बंद कर दिया। जिसे वादी ने सैमसंग सर्विस सेन्टर पर जमा कर दिया। सर्विस सेंटर में 22-23 दिन तक चक्कर लगाने के बाद भी फोन नहीं बना और न ही उसका पैसा वापस मिला। परिवादी एक इंश्योरैंस एजेंट था जिसे फोन की बेहद जरूरत थी। जब सर्विस सेंटर से बात नहीं बनी ता उसने सैमसंग के जयपुर ब्रांच में भी फोन करके शिकायत दर्ज कराई। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। अन्तत: वसीम ने उपभोक्ता न्यायालय की  शरण ली।
विपक्षी ने न्यायालय में अपना जवाब दावा पेश नहीं किया। दिनांक 21.11.2011 को प्रार्थना-पत्र के साथ जवाब प्रस्तुत करने पर 300/ रुपए कास्ट अदा करने पर जवाब रिकार्ड पर लेने के आदेश दिए गए। लेकिन कास्ट नहंी जमा करने पर विपक्षी सैमसंग इणिडया इलैक्ट्रानिक्स का जवाब रिकार्ड पर नहीं लिया जा सका।
न्यायालय ने विचारण में शिकायतकर्ता की शिकायत को सही पाया और विपक्षी पर स्पष्ट रूप से सेवा में त्रुटि के लिए दोषी पाया। न्यायालय ने विपक्षी को मोबाइल हैण्डसैट की पूरी कीमत 1699/ रुपए व परिवाद पेश करने की दिनांक 08.02.2010 से ताववसूली तक 9 फीसदी वार्षिक दर से ब्याज अदा करने के साथ ही आर्थिक व मानसिक क्षति के 2000/ रुपए व परिवाद व्यय के 1500/ रुपए दिए जाने का आदेश भी दिया।

(वाद संख्या- 228/2010, निर्णय दिनांक- 17.0.2013)


26 फ़रवरी, 2013

अधिक कीमत वसूलने पर रिलायंस फ्रेश पर हुआ जुर्माना


रिलायंस फ्रेश द्वारा शिकायतकर्ता प्रमोद कुमार दाणी से साबुन पर अंकित मूल्य से अधिक लिए जाने पर जिला उपभोक्ता फोरम, उदयपुर ने मानसिक संताप व अनुचित व्यापार व्यावहार विधि होने पर 2000/ रुपए का जुर्माना लगाते हुए परिवाद व्यय के 100/0 रुपए तथा अधिक लिए गए 6/ रुपए भी लौटाने के आदेश दिए।
इस प्रकरण में शिकायतकर्ता प्रमोद कुमार दाणी ने दिनांक 24.03.2012 को विपक्षी रिलायंस फ्रेश लि. से कपड़े धोने के दो साबुन जिसकी एम.आर.पी. 24 रुपए प्रति नग थी, उससे इनवायस में 27/ रुपए वसूले गए अर्थात प्रति नग 3/ रुपए अधिक लिए गए।
न्यायालय में विपक्षी की तरफ से इसका खण्डन नहीं किया गया जिस पर न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि परिवादी से अधिक वसूले गए 6/ रुपए, मानसिक संताप, पीड़ा तथा अनुचित व्यापार-व्यवहार होने के निमित्त 2000/ रुपए एवं परिवाद व्यय के निमित्त 1000/ रुपए कुल 3006/ रुपए नोटिस प्राप्त होने के एक माह के अन्दर परिवादी को अदा करे।

(वाद संख्या- 134/2012, निर्णय दिनांक- 21.01.2013)

25 फ़रवरी, 2013

स्टेट बैंक आफ इन्दौर को चैक डिसआनर करना महँगा पड़ा



स्टेट बैंक आफ इन्दौर की मुम्बई-आगरा रोड, इन्दौर की शाखा को नरेन्द्र कुमार के बचत खाता में पैसा होने के बावजूद चैक डिसआनर करना महँगा पड़ गया उसे 10000/ रुपए के मानसिक संत्रास के साथ ही शिकायतकर्ता को 1000/ रुपए परिवाद खर्च भी अदा करना पड़ा।
            शिकायतकर्ता के मुताबिक उसने दिनांक- 23.11.2009 को पालिसी के नवीनीकरण हेतु 2233/ रुपए प्रीमियम का भुगतान चैक से किया था जो 19.11.2009 दिनांकित था। विपक्षी के द्वारा 22.11.2009 को "टू डेज़ ओपनिंग बैलेंस इनसफीसिएन्ट" के टिप्पणी के साथ चैक अनादृत कर दिया। जबकि उस दिनांक तक परिवादी के बचत खाते में 8209.85 रुपए की राशि थी। शिकायतकर्ता का कथन था कि बैंक की इस लापरवाही की वजह से उसकी मेडीक्लेम पालिसी की निरन्तरता भंग हो गई पालिसी निरस्त कर दी गई परिवादी का बोनस व मेडीक्लेम का अधिकार समाप्त हो गया। 
            विपक्षी बैंक की ओर से 2004 एम.पी.डब्ल्यू.एम. वाल्यूम शार्ट नोट 1999/ की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया गया कि जिस पक्षकार के पास सर्वोत्तम साक्ष्य उपलब्ध हो, भले ही उस पर सबूत का भार न हो तो भी सर्वोत्तम साक्ष्य पेश नहीं की हो तो 'एडवर्स इन्फ्रेंस" निकाला जाना चाहिए। 

            परिवादी की ओर से 2010(4) एम.पी.एल.जे. पेज 9 की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया कि जब विपक्षी की लापरवाही स्पष्ट रूप से प्रतीत हो तो 'रेस्इस्पा लाक्यूटर" का सिद्धांत लागू होगा। परिवादी को कुछ भी साबित नहीं करना होता है, क्योंकि बातें स्वयं सिद्ध हो जाती हैं।
            न्यायालय ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों का अवलोकन करने पर पाया कि परिवादी के खाते में उस दिनांक तक पर्याप्त रक़म थी जिस दिनांक को बैंक ने चैक डिसआनर किया। इस तरह चैक का डिसआनर करना सेवा में त्रुटि है।
            न्यायालय ने विपक्षी स्टेट बैंक आफ इन्डिया को मानसिक संत्रास के 10,000/ रुपए व परिवाद व्यय के 1000/ रुपए परिवादी को दिए जाने का आदेश दिया।

(वाद संख्या- 541/09, दिनांक- 08.01.2013)


21 फ़रवरी, 2013

कोरियर डिलवरी के लेट-लतीफी पर भरना पड़ा जुर्माना



इन्दौर (मध्य प्रदेश) की जिला उपभोक्ता फोरम ने कोरियर डिलवरी में लेट-लतीफी करने पर कोरियर कम्पनी के विरुद्ध 3000/ रुपए मानसिक संत्रास के साथ-साथ 1000/ रुपए परिवाद व्यय भी अदा करने का आदेश विपक्षी को दिया।
            पाटीदार इण्टरप्राइजेज के अरुण कुमार आर्य ने तुकोगंज, इन्दौर स्थित रिलायंस कोरियर पर डिलवरी न करने का आरोप लगाते हुए उसके विरुद्ध एक केस इन्दौर उपभोक्ता फोरम में दायर कर दिया। परिवादी का कथन था कि उसके द्वारा 19.02.2010 को एक लिफाफा रिलायंस कोरियर के माध्यम से हिन्दुस्तान मेटल इण्डस्ट्रीज़, लुधियाना भेजा गया था। जिसमें टैक्स संबंधी फार्म सी थे। जबकि विपक्षी रिलायंस कोरियर ने अदालत में कहा कि परिवादी ने पता सही नहीं लिखा था और मोबाइल नम्बर भी नहीं लिखा था, सही पता मालुम चलने पर 23.03.2010 को उक्त कोरियर की डिलवरी कर दी गई।
            न्यायालय ने पाया कि विपक्षी ने ये नहीं बताया कि पत्र की डिलवरी किस माध्यम से की गई और न ही इस बावत कोई रसीद प्रस्तुत की गई। न्यायालय ने कहा कि परिवादी ने 2000/ रुपए टैक्स के व 5000/ रुपए इण्डैमिनीटी बाण्ड पर खर्च होने नुकसान बताया लेकिन इस संबंध में कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया।
            न्यायालय ने विपक्षी को आदेशित किया कि परिवादी को 3000/ रुपए मानसिक संत्रास के व 1000/ रुपए परिवाद व्यय के अदा करे।

(वाद संख्या- 868/2010, निर्णय दिनांक- 18.01.2013

20 फ़रवरी, 2013

सूचना न देने पर 500 रुपए क्षतिपूर्ति अदा करने के आदेश


जिला मंच उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर ने अपने एक आदेश में परिवादी को वांक्षित सूचना न प्रदान किए जाने पर सामान्य क्षतिपूर्ति 500/  रुपए देने को कहा।
मामले के अनुसार भगवान गंज, अजमेर निवासी नाथू सिंह ने जनसूचना अधिकार, 2005 की धारा 6(1) के तहत प्रतिवादी लोक सूचना अधिकारी एवं सचिव, नगर सुधार न्यास, अजमेर से एक सूचना माँगी थी। इस हेतु नाथू सिंह ने नियमानुसार 10 रुपए का भारतीय पोस्टल आर्डर भी फीस के रूप लगाया था। किन्तु प्रार्थी के प्रार्थना पत्र का को जवाब उक्त अधिकारी द्वारा नहीं दिया गया। प्रतिवादी के व्यवहार से निराश होकर परिवादी ने जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण में अपनी शिकायत दर्ज करा दी।

 विपक्षी ने परिवाद के संदर्भ में न्यायालय के समक्ष कहा कि परिवादी का आवेदन हमें मिला है किंतु प्रश्नात्मक चाही गई सूचना नहीं दी जा सकती क्योंकि उत्तरदाता 'EXEMPTED' है। विपक्षी ने न्यायालय से वाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की।

 न्यायालय ने पाया की विपक्षी ने न तो वादी को सूचना दी और न ही सूचना न दिए जाने का कोई कारण बताया। जो सेवा में एक बड़ी कमी है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी सूचनाएँ या वादी के आदेश का निस्तारण निर्धारित समयावधि में न किया जाना माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा रिवीज़न पीटिशन संख्या 244/04, निर्णय दिनांक- 28.05.2009 में डा एस.पी. थिरुमाला राव बनाम म्यूनिसपल मैसूर के अनुसार सेवा दोष है।
 न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विपक्षी सामान्य क्षतिपूर्ति के 500 रुपए इस आदेश के दो माह के अन्दर परिवादी को अदा करे, अथवा उक्त समस्त आदेशित राशि डिमाण्ड ड्राफ़ट के माध्यम से परिवादी के पते पर रजिस्टर्ड पोस्ट भेज दे।


(वाद संख्या- 299/2012, निर्णय दिनांक- 15.01.2013)


18 फ़रवरी, 2013

टेलीफोन उपभोक्ता को मिली राहत



हनुमानगढ़ (रजस्थान) के जिला उपभोक्ता न्यायालय ने BSNL द्वारा अधिक वसूले गए रुपए न केवल वापस करने का आदेश दिया बलिक उचित हर्जा-खर्चा भी दिलाया।
मामले के अनुसार परिवादी मदन लाल ने एक लैण्डलाइन ब्राडबैण्ड कनेक्शन विपक्षी BSNL से लिया था। विपक्षी द्वारा 01.06.2011 से 30.06.2011 तक का बिल 388/ रुपए भेजा गया था जिसे परिवादी ने जमा कर दिया लेकिन जब अगले माह पुन: बिल आया तो पुराना बिल भी उसमें जुड़ा हुआ था जो परिवादी द्वारा पहले ही जमा कर दिया गया था। इसी तरह BSNL ने कुछ और भी आगे के बिल भेजे जबकि सभी बिलों का भुगतान किया जा चुका था बावजूद इसके परिवादी का टेलीफोन विच्छेद कर दिया गया। हैरान-परेशान होने के बाद परिवादी मदन लाल ने उपभोक्ता न्यायालय में वाद दायर कर दिया।

न्यायालय में विपक्षी ने कहा कि उपभोक्ता ने अपना पहला बिल डबली राठान दूरभाष केन्द्र पर जमा किया था। नई बिलिंग चण्डीगढ़ से होने के कारण पिछला बकाया जुड़कर आ गया। फोन बन्द होने का कारण तकनीकी फाल्ट बताया और कहा कि चूँकि मौजूदा मामले में विवाद बिलों की बावत है इसलिए इसकी सुनवाई इस न्यायालय में नहीं होनी चाहिए। 
न्यायालय विपक्षी द्वारा पेश की गई रूलिंग 2009 डीएनजे सुप्रीम कोर्ट पेज नम्बर 1067 का अध्ययन करने के बाद इस वाद को स्वीकार किया और विपक्षी बीएसएनएल को आदेशित किया कि परिवादी से अधिक वसूले गए 53 रुपए लौटाए साथ ही 43 दिनों तक बन्द रहे टेलीफोन की अवधि के किराए में छूट की गणना कर उसे आगामी बिल में समायोजित करें व मानसिक परेशानी के 2100/ रुपए व परिवाद व्यय के 2100/ रुपए का भुगतान भी परिवादी को एक माह के अन्दर करें।

(वाद संख्या- 87/2012, निर्णय दिनांक- 17.01.2013)

16 फ़रवरी, 2013

सूरजमुखी के खराब बीजों के मूल्य वापसी का आदेश


कानपुर नगर के जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम ने वेद प्रकाश की शिकायत पर प्रतिवादी को सूरजमुखी के खराब बीजों के मूल्य को वापस करने का आदेश जारी किया। 
प्रकरण के अनुसार शिकायतकर्ता वेद प्रकाश ने श्री बालाजी बीज भण्डार कानपुर से रुपए 11250 में 45 किलोग्राम सूरजमुखी का बीज 26.02.2008 को खरीदा था। बीज का सम्पूर्ण तैयारी के साथ बोया था जिसमें 66700 रुपए खर्च किए, बावजूद इसके बीज 12-13 दिनों तक नहीं उगे। वेद प्रकाश ने इसकी शिकायत श्री बालाजी बीज भण्डार से की लेकिन श्री बालाजी बीज भण्डार का कहना था कि वह इन बीजों मे. कटियार फर्टिलाइजर शिवली रोड, कानपुर से कमीशन के आधार पर प्राप्त करता है, वह बीज स्वयं तैयार नहीं करता वास्तव में बीज एडवान्श इणिडया लिमिटेड  केयर आफ यूनिकार्न सी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा तैयार किए जाते हैं।
न्यायालय में मे. बीज एडवान्श इणिडया लि. ने परिवादी की शिकायत को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि बीज खराब होने के लिए विपक्षी संख्या-1 श्री बालाजी बीज भण्डार जिम्मेदार है।
न्यायालय ने यह माना कि यदि बोए गए बीज अपनी गुणवत्ता पर नहीं पाए जाते हैं तभी कोई किसान शिकायत के लिए तैयार होता है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विपक्षी बीज एडवान्श इणिडया लिमिटेड केयर आफ यूनिकार्न सीडस प्रा. लि. वादी को 30 दिनों के अन्दर 11250 रुपए अदा करे जहाँ तक खेतों को तैयार करने के संबंध में खादों के प्रयोग का कोई विवरण परिवादी ने प्रस्तुत नहीं किया इस कारण मात्र बीज का मूल्य ही परिवादी पाने का अधिकारी है।

(वाद संख्या-716/2009, निर्णय दिनांक- 14.01.2013)

15 फ़रवरी, 2013

आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी के विरुद्ध दायर वाद खारिज


परिवादिनी श्रीमती कनक मिश्रा ने अपने पति यू.के. मिश्रा व पुत्र विकास मिश्रा द्वारा विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी से लिए गए होम लोन के संदभ में एक वाद जिला उपभोक्ता फोरम बरेली में दाखिल किया गया था जिसे फोरम ने खारिज कर दिया।
      मामले के अनुसार याची के पति यू.के. मिश्रा व पुत्र विकास मिश्रा ने 700000/ रुपए का होम लोन विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेंस कम्पनी से लिया था। दुर्भाग्यवश यू.के. मिश्रा के मृत्युपरांत पुत्र विकास मिश्रा ने पोस्ट डेटेड चेक के माध्यम से लगातार राशि का भुगतान किया। शिकायतकर्ता के अनुसार पुत्र की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गर्इ। किन्तु विपक्षी को कई बार लिखने के बावजूद होम लोन के साथ मिलने वाला मुत दुर्घटना बीमा क्लेम नहीं दिया और बकायी धनराशि के लिए नोटिस भेज दिया।

      न्यायालय ने दस्तावेजों के अवलोकन करने पर पाया कि होम लोन के साथ जो मृत्यु दुर्घटना बीमा की सुविधा दी गई थी वो केवल प्रथम लोन आवेदक को ही प्रदान की गई थी।
      शर्त के अनुसार-
"Further, we are pleased to inform that with the final disbursement o this loan, a Free Personal Accident Insurance cover to the first applicant o this loan, to the extent o principal amount, is extended as per as the applicable conditions."

      न्यायालय ने यही भी पाया कि प्रथम आवेदक यू.के. मिश्रा का देहान्त दुर्घटना में नहीं बल्कि स्वाभाविक हुआ था। न्यायालय ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर परिवादिनी श्रीमती कनक मिश्रा का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध खारिज कर दिया, चूँकि परिवादिनी प्रश्नगत बीमा पालिसी की लाभार्थी नहीं थी इसलिए न्यायालय द्वारा उन्हें कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारिणी नहीं पाया गया।

(वाद संख्या- 108/2011, निर्णय दिनांक- 10.01.2013)

14 फ़रवरी, 2013

“माइक्रोमैक्स” के खराब मोबाइल को क्षतिपूर्ति के साथ बदलने का आदेश


मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफैक्ट के चलते परिवादी की शिकायत पर माइक्रोमैक्स कम्पनी के मोबाइल को बदलकर नया मोबाइल देने और साथ में मानसिक संताप व वाद खर्च की क्षतिपूर्ति अदा करने का विपक्षी को आदेश बरेली उपभोक्ता न्यायालय ने दिया है।
            परिवादी के मुताबिक उसने एक सीडीएमए हैंडसेट जो माइक्रोमैक्स कम्पनी का था, शालू मोबाइल सेन्टर, मीरगंज, बरेली से 2200/ रुपए नकद देकर खरीदा था। मोबाइल कुछ दिनों तक तो ठीक चला लेकिन उसके बाद उसने काम करना बन्द कर दिया। माइक्रोमैक्स मोबाइल केयर सेन्टर पर जब परिवादी ने अपना मोबाइल दिखाया तो उसे बताया गया कि मैन्यूफ़ैक्चरिंग फाल्ट के कारण मोबाइल रिपेयर नहीं हो सकता है। कस्टमर केयर यानि कम्पनी के अथराज्ड सर्विस सेन्टर ने इस बावत एक पेपर परिवादी को दिया और कहा कि आपने जिस डीलर से मोबाइल खरीदा था इस पेपर को देकर और अपना खराब मोबाइल जमा कर नया मोबाइल ले लें। परिवादी ने यही किया लेकिन पहले तो दुकानदार कहता रहा कि नया मोबाइल आपको मिल जाएगा लेकिन बाद में उसने मोबाइल सेट नया देने से इन्कार कर दिया। जिस पर परिवादी ने उपभोक्ता न्यायालय में अपना वाद दाखिल कर दिया।
            न्यायालय ने परिवादी द्वारा दाखिल अभिलेखीय साक्ष्यों को देखने पर पाया कि वास्तव में मोबाइल सेट में निर्माण संबंधी त्रुटि थी। जिसे न बदलकर विपक्षीगण द्वारा शिकायतकर्ता के साथ अनुचित व्यापार प्रथा अपना है, जिसे सेवा में त्रुटि माना गया।
            न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि परिवादी को उसी मेक/माडल का दूसरा मोबाइल अथवा उस मोबाइल की कीमत 2200/ रुपए विपक्षीगण को वापस करें, साथ ही ये भी आदेशित किया कि आर्थिक क्षति के 5000/ रुपए तथा वाद व्यय के रूप में 2000/ रुपए अतिरिक्त अदा करें। यदि एक माह के अन्दर ऐसा नहीं किया जाता तो निर्णय की तिथि से भुगतान की तारीख तक 9 फीसदी साधारण वार्षिक ब्याज भी अदा किया जाए।


(वाद संख्या- 38/2010, निर्णय दिनांक- 03.01.2013)  

13 फ़रवरी, 2013

बरेली विकास प्राधिकरण द्वारा गलत रूप से काटी गई राशि लौटाने का आदेश


बरेली के उपभोक्ता न्यायालय ने परिवादी के गलत रूप से काटे गए 39700/ रुपए हर्जे-खर्चे और मानसिक संताप की क्षतिपूर्ति समेत बरेली विकास प्राधिकरण को लौटाने के निर्देश दिए हैं।
       प्रकरण के अनुसार बरेली निवासी दीपक भसीन ने समाचार-पत्र में छपे विज्ञापन के आधार पर एक भूखण्ड प्राप्ति हेतु बरेली विकास प्राधिकरण को नियमानुसार मय पंजीकरण धनराशि 1,58,800/ रुपए जो कि बैंक ड्राफ्ट के रूप में थी, आवेदन किया।
       बरेली विकास प्राधिकरण की पंजीकरण पुस्तिका की शर्त नम्बर 9.1 में लिखा था-
यदि कोई पंजीकृत व्यक्ति पंजीकरण धनराशि लाटरी पड़ने से पूर्व वापस लेना चाहता है, तो उसको पंजीकरण धनराशि बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
       उपरोक्त शर्त का आधार लेते हुए वादी ने दिनांक 09-11-2010 को अपनी जमा धनराशि प्राप्ति का अनुरोध प्राधिकरण से किया। परिवादी के अनुरोध के आधार पर प्राधिकरण ने अपने नियम 9.2 जिसके अनुसार-
यदि कोई आवेदक लाटरी में आबंटन हो जाने के पश्चात अपने भूखण्ड को निरस्त कराकर धनराशि वापस लेना चाहता है, तो पंजीकरण धनराशि का 25 प्रतिशत काटकर शेष धनराशि उसे बिना ब्याज के वापस कर दी जाएगी।
       प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त नियम 9.2 के आधार वादी को उसकी कुल जमा धनराशि का 25 प्रतिशत यानि 39700/ काटकर शेष धनराशि प्रदान कर दी गई।
       प्राधिकरण के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर काटी गई धनराशि मय क्षतिपूर्ति और वाद खर्च के साथ लौटाने के लिए उपभोक्ता न्यायालय में वाद दाखिल कर दिया।
       न्यायालय ने समस्त दस्तावेजों के अवलोकन के बाद पाया कि प्रतिवादी द्वारा जो आबंटन/चयन पत्र दिनांक 16-09-2010 को भेजा गया था उसमें न तो भूखण्ड संख्या का उल्लेख था और न ही लाटरी ड्रा के माध्यम चयन का जिक्र! वास्तव में अभी लाटरी ड्रा होना शेष है। न्यायालय ने ये निष्कर्ष भी निकाला कि वादी द्वारा दिए गए निरस्ती प्रार्थना-पत्र के दिनांक 09-11-2010 तक प्राधिकरण में भूखण्ड की लाटरी ड्रा नहीं आयोजित किया गया था।
       अतः न्यायालय ने प्राधिकरण के नियम 9 प्रतिशत का समर्थन वादी के पक्ष में मानते हुए प्रधिकरण को 39700/  रुपए मय मानसिक संताप 5000/ रुपए व वाद खर्च के रूप में 2000/ भी अदा करने का निर्देश दिया। अदा की जाने वाली कुल धनराशि पर वाद दायर करने के दिनांक 23-04-2012 से 9 प्रतिशत का वार्षिक साधारण ब्याज भी देने का आदेश दिया।

(वाद संख्याः 95/2012, निर्णय दिनांकः 16-01-2013)
       

09 फ़रवरी, 2013

प्लांटेशन के लिए 50 पौधे दें


मुरादाबाद निवासी आशुतोष सिंह के परिवाद पर न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम (प्रथम) ने प्रतिवादी शिवशक्ति बायो प्लानटेक लिमिटेड मुरादाबाद के खिलाफ निर्णय देते हुए 50 सागौन के पौधे देने का आदेश दिया।
इस परिवाद में आशुतोष सिंह की शिकायत थी कि विपक्षी शिवशक्ति बायोटेक प्लानटेक लिमिटेड से उसने 50 युनिट यानि 500 नग सागौन के पौधे 34,900 रुपए में खरीदा। इसके लिए 

दिनांक 27.10.2010 को 2000 रुपए एडवांश देकर एक एग्रीमैंट किया। विपक्षी द्वारा पौध उपलब्ध कराए जाने के बाद बकाया 32,900 रुपए दिनांक 08.11.2010 को चेक द्वारा अदा कर दिए गए। वादी का कथन था कि पौध की नस्ल बेहद खराब थी। उक्त खरीद गए पौधे सही रूप से नहीं बढ़े और नष्ट हो गए। उसे जो पौधे दिए गए थे वो बिल्कुल बेकार किस्म के थे। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की ग। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से उपभोक्ता न्यायालय में 34900 रुपए सम्पूर्ण खरीद मूल्य के साथ-साथ पौध लगवाने में आया खर्च, देखभाल पर हुए व्यय, वाद खर्च तथा क्षतिपूर्ति प्रापित हेतु अपना दावा दाखिल किया।
            प्रतिवादी का कथन था कि उसके और वादी के बीच दिनांक 27.10.2010 को एक सेल एग्रीमैंट निष्पादित हुआ था जिसके अनुसार पैसा वापस नहीं किया जाएगा, पौधे मरने की दशा में 10 फीसदी से ज्यादा बदली नहीं की जाएगी। विपक्षी का कहना ये भी था कि एग्रीमैंट के मुताबिक प्रस्तुत फोरम को विवाद का निर्णय करने का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
            न्यायालय द्वारा परिवादी का परिवाद -पत्र आंशिक रूप से स्वीकृत करते हुए विपक्षीगण को 50 सागौन के पौधे दिनांक 01.02.2013 से 28.02.2013 के बीच वादी को उपलब्ध कराए जाने के आदेश दिए।

(परिवाद संख्या- 48/2011, निर्णय दिनांक- 22-01-2013  )



08 फ़रवरी, 2013

आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस को पैसे लौटाने पड़े


मुरादाबाद उत्तर प्रदेश के न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम (प्रथम) ने जाकिर हुसैन के परिवाद पर निर्णय देते हुए कहा कि आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस को पालिसी बाण्ड प्राप्त होने 15 दिनों के अन्दर निरस्ती आवेदन होने के कारण परिवादकर्ता को उसके 30000 रुपए मय 5000 हर्जे-खर्चे के साथ लौटाने होंगे।
                              
मामले के अनुसार वादी शिकायतकर्ता ने मार्च, 2010 में विपक्षी आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल लाइफ इंश्योरेंस से एक बीमा पालिसी ली थी जिसके प्रथम प्रीमियम का भुगतान चेक द्वारा 30.03.2010 को कर दिया गया था। उस वक्त विपक्षी द्वारा कहा गया कि वादी को एक माह के अन्दर बीमा पालिसी बाण्ड भेज दिया जाएगा किन्तु आठ माह तक शिकायतकर्ता को बाण्ड नहीं भेजा गया जबकि इस बावत शिकायतकर्ता ने अनेकों बार विपक्षीगण को सूचित भी किया। तकरीबन आठ माह बाद जब परिवादी को पालिसी बाण्ड मिला तो पता चला कि यह बाण्ड उसे दिए गए आश्वासन और मर्जी के मुताबिक नहीं है, जिससे असंतुष्ट होकर उसे निरस्त कराने का प्रार्थना-पत्र दिनांक 08.11.2010 को मय पालिसी बाण्ड विपक्षी को दे दिया। विपक्षीगण का कहना था कि दिनांक 29.03.2010 को ही पालिसी बाण्ड पालिसी होल्डर के एजेंट को भेज दिया गया था। विपक्षीगण का यह भी कहना था कि इंश्योरेंस रेग्यूलेटरी एवं डेवलपमैंट अथारिटी रेग्यूलेशन के नियमों के अनुसार यदि पालिसी होल्डर पालिसी की भर्ती से संतुष्ट नहीं है तो वह पालिसी को 15 दिन में वापस कर सकता है चूँकि इस 'फ्री लुक' पीरियड में पालिसी को निरस्त कराने का आवेदन नहीं किया गया इस लिए पालिसी निरस्त कर धनराशि लौटाई नहीं जा सकती है।
किन्तु न्यायालय ने पत्रावलियों और साक्ष्यों के अवलोनोपरान्त पाया कि परिवादी को पालिसी बाण्ड 03.11.2010 को मिला माना जाएगा। दिनांक 08.11.2010 को वादी ने इसे निरस्त करने का आवेदन विपक्षीगण को दिया जो नियमानुसार सही है।
         इस तरह परिवादी जाकिर हुसैन का परिवाद 35000/ रुपए की धनराशि के लिए विपक्षीगण यानि आई.सी.आई.सी.आई. प्रोडेन्शियल के खिलाफ़ स्वीकार किया और निर्णय की तिथि से पैसे की वसूली तक 8 फ़ीसदी साधारण ब्याज की दर से धनराशि अदा किए जाने का आदेश पारित किया।

(परिवाद संख्या- 75/2011, निर्णय दिनांक- 30-01-2013)