23 जनवरी, 2010

न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को पॉलिसी धारक की दवा निरस्त करना महँगा पड़ा



बीमा कंपनी द्वारा मेडिक्लेम पॉलिसीधारक को पुरानी बीमारी के नाम पर दावा निरस्त किए जाने को मुंबई की जिला उपभोक्ता अदालत ने गलत ठहराया है और बीमा कंपनी को ब्याज के साथ मेडिक्लेम देने का आदेश दिया है। बीमा कंपनी अदालत में यह साबित करने में नाकामयाब रही कि ग्राहक को पॉलिसी लेने से पहले दिल की बीमारी थी।

इस मामले में, मुंबई के सान्ताक्रूज इलाके में रहनेवाले राम अग्रवाल ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से 5 लाख रुपये की गुड हेल्थ मेडिक्लेम पॉलिसी खरीदी थी। जून 2000 से मई 2001 तक इस पॉलिसी में सभी बीमारियां शामिल थीं। मेडिक्लेम लेने के दो महीने बाद ही राम अग्रवाल सूखी खांसी से ग्रसित हो गए। ब्रीच कैंडी अस्पताल से एंजियोग्रॉफी करवाने के बाद अग्रवाल को पता चला कि उन्हें बाईपास सर्जरी करवानी पड़ेगी। अग्रवाल को 4.25 लाख रुपये की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से 44,315 रुपये एंजियोग्रॉफी के लिए और 3,81,109 रुपये सर्जरी के लिए दावा किया। लेकिन न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने उनका दावा यह कहकर खारिज कर दिया कि यह बीमारी उनको पॉलिसी लेने से पहले से है इसलिए वे दावे के हकदार नहीं हैं।

इसके बाद अग्रवाल ने इसकी शिकायत 2004 में राज्य की जिला उपभोक्ता अदालत में की। 2005 में राम अग्रवाल की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी कुसुम अग्रवाल ने इस मामले को जारी रखा। अग्रवाल के वकील उदय वावीकर ने उपभोक्ता अदालत के सामने यह दलील पेश की कि अग्रवाल द्वारा पॉलिसी लिए जाने के दौरान उन्हें अपनी बीमारी की कोई खबर नहीं थी और न ही इंश्योरेंस कंपनी के पास कोई सबूत है कि अग्रवाल ने अगस्त 2001 से पहले इस बीमारी का इलाज करवाया हो .उपभोक्ता अदालत ने अग्रवाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए न्यू इंडिया इंश्योरंस कंपनी को आदेश दिया कि वह दिनांक 8 अगस्त 2001 से 9 फीसदी ब्याज दर के साथ उपभोक्ता को 4.24 लाख रुपये की रकम अदा करे। साथ ही दो हजार रुपये मुआवजा और एक हजार अदालती खर्च के दे। उदय वावीकर ने मीडिया को बताया कि मेडिक्लेम पॉलिसी लेते समय कंपनियां ग्राहकों को काफी कुछ नहीं बतातीं। इसलिए ग्राहक भी परशान हो जाते हैं। मेडिक्लेम जैसी पॉलिसी लेते समय ग्राहकों को छोटी से छोटी जानकारी लेनी आवश्यक है।

 

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